कुबा पहुंचना :- 8 रबीउल अव्वल 13 नबुव्वत, पीर (सोमवार) के दिन (23 सितंबर सन 622 ईंसवीं) को
आप कुबा पहुंचें । आप यहां 3 दिन तक ठहरे और एक मस्ज़िद की बुनियाद रखी । इसी साल बद्र की लडाई हुयी । यह लडाई 17 रमज़ान जुमा के दिन गुयी । 3 हिजरी में ज़कात फ़र्ज़ हुयी । 4 हिजरी में शराब हराम हुयी । 5 हिजरी में औरतों को पर्दे का हुक्म हुआ ।
उहुद की लडाई :- 7 शव्वाल 3 हिजरी को सनीचर (शनिवार) के दिन यह लडाई लडी गयी । इसी लडाई में
रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चन्द सहाबा ने नाफ़रमानी की, जिसकी वजह से कुछ दे के लिये पराजय का सामना करना पडा और आपके जिस्म पर ज़ख्म आये।
सुलह हुदैबिय्या :- 6 हिजरी में आप उमरा के लिये मदीना से मक्का आये, लेकिन काफ़िरों ने इजाज़त नही
दी । और चन्द शर्तों के साथ अगले वर्ष आने को कहा । आपने तमाम शर्तों को मान लिया और वापस लौट गये।
बादशाहों को दावत :- 6 हिजरी में ह्ब्शा, नजरान, अम्मान, ईरान, मिस्र, शाम, यमामा, और रुम के
बादशाहों को दावती और तब्लीगी खत लिखे । हबश, नजरान, अम्मान के बादशाह ईमान ले आये ।
सात हिजरी :- 7 हिजरी में नज्द का वाली सुमामा, गस्सान का वाली जबला वगैरह इस्लाम लाये । खैबर की
लडाई भी इसी साल में हुई ।
फ़तह - मक्का :- 8 हिजरी में मक्का फ़तह हुआ । इसकी वजह 6 हिजरी मे सुल्ह हुदैबिय्या का मुआहिदा
तोडना था । 20 रमज़ान को शहर मक्का के अन्दर दाखिल हुये और ऊंट पर अपने पीछे आज़ाद किये हुये गुलाम हज़रत ज़ैद के बेटे उसामा को बिठाये हुये थे । इस फ़तह में दो मुसलमान शहीद और 28 काफ़िर मारे गये । आप सल्लल्लाहुए अलैहि ने माफ़ी का एलान फ़रमाया ।
आठ हिजरी :- 8 हिजरी में खालिद बिन वलीद, उस्मान बिन तल्हा, अमर बिन आस, अबू जेहल का बेटा
ईकरमा वगैरह इस्लाम लाये और खूब इस्लाम लाये ।
हुनैन की जंग :- मक्का की हार का बदला लेने और काफ़िरों को खुश रखने के लिये शव्वाल 8 हिजरी में चार
हज़ार का लश्कर लेकर हुनैन की वादी में जमा हुये । मुस्लमान लश्कर की तादाद बारह हज़ार थी लेकिन बहुत से सहाबा ने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नाफ़रमानी की, जिसकी वजह से पराजय का मुंह देखना पडा । बाद में अल्लाह की मदद से हालत सुधर गयी ।
नौ हिजरी :- इस साल हज फ़र्ज़ हुआ । चुनांन्चे इस साल हज़रत सिद्दीक रज़ि० की कियादत (इमामत
में, इमाम, यानि नमाज़ पढाने वाला) 300 सहाबा ने हज किया । फ़िर हज ही के मौके पर हज़रत अली ने सूर : तौबा पढ कर सुनाई ।
आखिरी हज :- 10 हिजरी में आपने हज अदा किया । आपके इस अन्तिम हज में एक लाख चौबीस हज़ार
मुस्लमान शरीक हुये । इस हज का खुत्बा (बयान या तकरीर) आपका आखिरी वाज़ (धार्मिक बयान) था । आपने अपने खुत्बे में जुदाई की तरह भी इशारा कर दिया था, इसके लिये इस हज का नाम "हज्जे विदाअ" भी कहा जाने लगा ।
वफ़ात (देहान्त) :- 11 हिजरी में 29 सफ़र को पीर के दिन एक जनाज़े की नमाज़ से वापस आ रहे थे की
रास्ते में ही सर में दर्द होने लगा । बहुत तेज़ बुखार आ गया । इन्तिकाल से पांच दिन पहले पूर्व सात कुओं के सात मश्क पानी से गुस्ल (स्नान) किया । यह बुध का दिन था । जुमेरात को तीन अहम वसिय्यतें फ़रमायीं । एक दिन कब्ल अपने चालीस गुलामों को आज़ाद किया । सारी नकदी खैरात (दान) कर दी । अन्तिम दिन पीर (सोमवार) का था । इसी दिन 12 रबीउल अव्वल 11 हिजरी चाश्त के समय आप इस दुनिया से तशरीफ़ ले गये । इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन । चांद की तारीख के हिसाब से आपकी उम्र 63 साल 4 दिन की थी । यह बात खास तौर पर ध्यान में रहे की आपकी नमाज़ जनाज़ा किसी ने नही पढाई । बारी-बारी, चार-चार, छ्ह:-छ्ह: लोग आइशा रजि० के हुजरे में जाते थे और अपने तौर पर पढकर वापस आ जाते थे । यह तरीका हज़रत अबू बक्र रज़ि० ने सुझाया था और हज़रत उमर ने इसकी ताईद (मन्ज़ुरी) की और सबने अमल किया ।
इन्तिकाल के लगभग 32 घंटे के बाद हज़रत आइशा रज़ि० के कमरे में जहां इन्तिकाल फ़रमाया था दफ़न किये गये ।
अगले भाग में जारी....
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मुहम्मद सल्ल. बारे में आपका यह सिलसिला भी लाजवाब है, अल्लाह हमें भी उनके बताये रास्ते पर चलने की हिम्मत अता फरमाये, शुक्रिया
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