मुझ से भी कई लोग ई-मेल करके ये सवाल कर चुके है...
आज हिन्दुस्तान में कई मसलक के मुसलमान रहते है जैसे :- हनाफ़ि, बरेलवी, अहले-हदीस, वगैरह। हिन्दुस्तान में मौजुद इन मसलकों में से सिर्फ़ अहले-हदीस मसलक के लोगों के यहां की औरतें ही मस्जिद में नमाज़ पढती है। ये लोग अपनी औरतों को ईद-उल-फ़ितर और ईद-उल-अज़हा की मौके पर ईदगाह में भी ले जाते है ताकि औरतें भी ईद की नमाज़ पढ सकें। ईदगाह में इमाम के पीछे सारे मर्द सफ़ (पंक्ति) बनाकर नमाज़ पढते है और उनके पीछे एक परदा पडा होता जिसके पीछे औरतें नमाज़ पढती है।
इस वजह से अहले-ह्दीस मसलक के लोगों को हिन्दुस्तान में काफ़ी भला-बुरा कहा जाता है। कुछ लोग तो उन्हे मुसलमान मानने से इंकार कर देते हैं।
इस वजह से मैनें इस बात के मुत्तालिक कुरआन की आयते और हदीसे ढूढने शुरु कर दी..कई दिन की तलाश के बाद....अब जाकर काफ़ी कुछ मिल गया है। जो आयतें और हदीसें मुझे मिली है उनसे ये साबित होता है कि औरतें मस्जिद में नमाज़ अदा कर सकती है, इमाम के पीछे जमात के साथ नमाज़ पढ सकती है और ईद की नमाज़ पढने जा सकती है।
(अपडेट 13 सितम्बर 2009 10 : 36 Pm :- आज कुरआन मजीद को मायनो के साथ पढते वक्त मुझे एक आयत मिली जिसे मैं काफ़ी वक्त से ढुढं रहा था।
"ऎ मरयम! अपने परवर्दिगार की फ़रमाब्रदारी करना और सजदा करना और रुकु करने वालों से साथ रुकु करना। सुरह आले इमरान सु. ३ : आ. ४३."
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सबसे पहले इसका ज़िक्र सुरह ब.क.र सु. २. : आ. ११४ "और इससे बढकर कौन ज़ालिम है जो अल्लाह की मस्जिदों में जिक्र करने को मना करें और उन मस्जिदों को विरान करने की कोशिश करें। ऎसे लोगो को हक नही है कि उन मस्जिदों में दाखिल हो मगर डरते हुये ऎसो के लिये दुनिया मे रुसवाई और आखिरत में बडा अज़ाब है"।
सुरह ब.क.र. सु. २ : आ. ८० में "क्या तुम किताबें ईलाही के बाज़ अहकाम को मानते हो और बाज़ से इन्कार कर देते हो जो तुम में से ऎसी हरकत करे उन्की सज़ा क्या हो सकती है के दुनिया की ज़िन्दगी में तो रुसवाई हो कयामत के दिन सख्त से सख्त अज़ाब में मुब्तिला किये जायें और जो काम तुम करते हो अल्लाह उससे गाफ़िल नही।"
अब पेश है कुछ हदीसें :-
"रसुल अल्लाह सल्लाहो अलैहि वसल्लम फ़र्माया करते थे कि इस शहिदा खातुन उम्मे वरका अन्सारिया के यहां चलो हम उनकी ज़ियारत करे आपने उन्हे (उम्मे वरका) को ये दे रखा था की उन्के लिये अज़ान और अकामत कही जाये और वो खुद फ़र्ज़ नमाज़ में अपने घर व मुह्ल्ले वाली औरतों की जमात की इमामत करायें।"
हदीसों के नाम :- १) मुस्तदरिक हाकिम ३०२/१. २) सनन अबी दाऊद मये ऊजुल माबुद ३३/१. ३)
सनन दार कतनी ४०३/१. ४) सही इबने खुज़ेमा ८९/३. और कई हदीसों ब सनद सही।
"रसुल अल्लाह सल्लाहो अलैहि वसल्लम ने मस्जिद में बजमात नमाज़ पढने के लिये आने वाली औरतों के वास्ते एक खुसुसी दरवाज़ा मुकर्रर कर दिया था"। "मुस्तदारिक हाकिम ३०२/१." (और इस्लाम के पहले खलीफ़ा उमर बिन खतताब रज़ीअल्लाहॊ तआलाअन्हो ने उस दरवाज़े को बरकरार रखा था)
"जब तुम्हारी औरतें तुमसे रात में नमाज़ बजमात पढने के लिये मस्जिद जाने के लिये इज़ाज़त मांगे तो तुम उन्हे इजाज़त दे दों"। "सही बुखारी ११९/१."
"अल्लाह की बन्दियों को तुम अल्लाह की मस्जिदों में जाकर नमाज़ पढने से मत रोको"। "हाशिया सही बुखारी अज़ शेख अहमद अली सहारनपुरी ११९/१ हाशिया न. १२"
"मर्द घर की औरतों और खवातीन को मस्जिद में आकर नमाज़ पढने से हर्गिज़ हर्गिज़ मना न करें"। "मुसनद अहमद ४९, ३६/३"
"हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसुद रज़ीअल्लाहो तआलाअन्हो से मरवी है औरत की अपने घर में पढी हुई नमाज़ दुसरी जगह पढी हुई नमाज़ से बेहतर है लेकिन अगर वो नमाज़ अपने घर के बजाय मस्जिदे हराम यानि खाने-काबा और मस्जिदे नबवी में पढे तो वो घर में पढी हुई नमाज़ से बेहतर है और वो औरत अपने पांव में मोज़ा पहन कर निकले"। "मौज़्ज़म कबीरुल तीबरानी व सनद सही ३३९/९."
"मर्द के लिये सबसे अफ़ज़ल सफ़े अव्वल है और औरत के लिये सबसे अफ़ज़ल पिछली सफ़ है"। "तर्जुमाने इस्लाम" ८६-८७।
"रसुल अल्लाह सल्लाहो अलैहि वसल्लम ने हमको हुक्म दिया कि हम नौजवान हायज़ा (हैज़, माहवारी वाली) और गैर-शादीशुदा औरतों को ईद-उल-फ़ितर और ईद-उल-अज़हा के दिन ईदगाह लेकर जायें तो वो औरतें जो शरई ऊजुल की वजह से नमाज़ नही पढ सकती नमाज़ की जगह से अलग रहें लेकिन खैर और मुसलमानों की दुआ मे हाज़िर हों। हज़रत उम्मे अतिया फ़र्माती है की मैनें पुछा "ऎ अल्लाह के रसुल हम में से कुछ औरतें वो है जिनके पास चादर या बुर्का नही है तो आपने फ़र्माया तो उसकी बहन उसे अपनी चादर या बुर्का पहनाकर ले जायें"। "सही मुस्लिम मये शरह नुबी १७९, १८०/६."
"रसुल अल्लाह सल्लाहो अलैहि वसल्लम ईद की नमाज़ में औरतों को खास तौर पर सदके का हुक्म फ़र्माते थे और औरतें अपने ज़ेवरात तक सदके में दिया करती थी"। मुत्विका अलैह (सही बुखारी और सही मुस्लिम दोनों में इन्ही अल्फ़ाज़ो में मौजुद)
"हज़रत आयशा सिद्दिका रज़ीअल्लाहो तआलाअन्हा से रिवायत है की मोमिन औरतें फ़जर की नमाज़ में नबी करीम सल्लाहो अलैहि वसल्लम के साथ जमात में हाज़िर हुआ करती थी वो अपनी चादरों लिपटी रह्ती थी फ़िर नमाज़ के बाद अपने घरों को फ़िर इस लौटती की कोई फ़िर पहचान नही सकता"। "बुखारी, मुस्लिम"
"नबी करीम सल्लाहो अलैहि वसल्लम मस्जिद में थोडी देर ठहरे रहते ताकि औरतें मस्जिद से बइत्मिनान बाहर निकल जायें"। "सही बुखारी, अबुदाऊद."
"हज़रत अनस रज़िअल्लाहो तआलाअन्हो से रिवायत है कि रसुलें अकरम सल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़र्माया मैं नमाज़ शुरु करता हूं और इसको लम्बी पढना चाहता हूं लेकिन किसी बच्चे के रोने की आवाज़ सुनता हूं तो नमाज़ मुख्तसिर कर देता हूं इसलिये मुझे मालुम है कि बच्चे की रोने की वजह से इसकी मां को तकलीफ़ और बैचेनी होगी।" "सही बुखारी और मुस्लिम"
"इमाम की गलती पर जमात में शरीक औरतें टोकती थी"
"मर्दों के लिये सुबहानल्लाह कहना और औरतों के लिये हाथ पर हाथ मारना।" "सही बुखारी व मुस्लिम"
"हज़रत उम्मे हश्शाम बिनते हारसा बिल अल अमान रज़ीअल्लाहो तआलाअन्हा फ़र्माती है कि मैनें सुरह काफ़ वल कुरआनो मजीद रसुल अल्लाह सल्लाहो अलैहि वसल्लम की ज़बान मुबारक से सुनकर हिफ़्ज़ किया था जिसे आप हर जुमा मिम्बर पर खुतबे के दौरान पढा करते थे।" "सही मुस्लिम" (इस हदीस से मालुम हुआ की जुमे की नमाज़ और खुत्बे जुमा में मर्दों के साथ औरतें भी रहा करती थी)
इन सब ह्दीसों को देखने और पढने के बाद कोई गुन्जाईश नही बचती है। अल्लाह ने औरत और मर्द को बराबर हक दिये है, दोनो की नमाज़ में कोई फ़र्क नही है।
अब भी आप लोगो को यकीन नही है तो ज़रा आप मेरे इन सवालों का कुरआन और हदीस की रोशनी में जवाब दीजिये
"अगर औरत को मर्द के पीछे मस्जिद में नमाज़ पढना मना होता तो "
मस्जिदे हराम यानि खाने काबा में औरतें मर्दों के पीछे नमाज़ क्यौं पढती है????
मस्जिदे नबवी में मर्द के पीछे नमाज़ क्यौं पढती हैं??????
हज के मैदान में औरत मर्द के साथ क्यौं मौजुद होती है?????? उन्हे तो बिल्कुल अलग - अलग रहना चाहिये था..अल्लाह ने औरतों के लिये अलग से वक्त क्यौं नही बताया???
सफ़ा मरवाह औरतें मर्दों के साथ क्यौं दौडती है?????? अगर औरत का मर्द के साथ नमाज़ पढना मना होता तो अल्लाह पाक मर्द और औरत को अलग - अलग वक्त बताता दौडने के लिये....जबकि ऐसा कुछ भी नही है।
औरत तवाफ़ मर्द के साथ क्यौं करती है????? खाने-काबा भी तो एक मस्जिद है और उसमें भी औरत मर्द के साथ जाती है और उसके साथ तवाफ़ करती है ऐसा क्यौ????? अगर औरत का मस्जिद में जाना मना होता तो अल्लाह पाक तवाफ़ करने को क्यौं कहते?????
जब हज के इतने अहकामों में औरत मर्द के साथ मौजुद होती है और इन अहकामों के बिना हज पुरा नही होता है। जब अल्लाह ने हज के वक्त औरत और मर्द में फ़र्क नही किया तो हम कौन होतें है फ़र्क करने वाले??????? तो मेरी मुसलमानों से गुज़ारिश है की मस्जिद में बाजमात नमाज़ पढना औरत का हक है वो उसे दीजिये....अल्लाह ने रमज़ान के पुरे रोज़े रखने के बाद रोज़दार के लिये ईद के दिन को तोहफ़ा कहा है और इस तोहफ़े पर औरतों का भी उतना ही हक जितना मर्दों का है तो औरतों को उनका हक दो वर्ना कयामत के दिन अल्लाह के सामने ये औरतें तुम्हारा गिरेबान पकड कर सवाल करेंगी और उस दिन तुम्हारे पास कोई जवाब नही होगा।
अल्लाह आप सबको कुरआन और हदीस को पढकर, सुनकर, उसको समझने की और उस पर अमल करने की तौफ़िक अता फ़र्मायें।
आमीन, सुम्मा आमीन
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औरतें मस्जिद में नमाज़ पढ़ सकती हैं, लेकिन सेपरेट स्थान पर.... मर्दों के साथ, एक ही साथ नहीं, क्यूंकि नमाज़ में कंधे से कन्धा मिलना और दो लोगों के बीच में जगह छूटना जायज़ नहीं है... अगरएक साथ एक ही जगह पर औरत और मर्द नमाज़ पढेंगे... तो ऐसा मुझे लगता है कि नमाज़ में ध्यान कम और बगल में बैठी ख्व्तीं पर ध्यान ज्यादा होगा..... यही वजह है औरतों को मस्जिद में सेपरेट या अलाहिदा जगह पर नमाज़ पढने की इजाज़त है... बेहतर है कि अलाहिदा मस्जिद ही हो...
जवाब देंहटाएंयही बात औरतों के बाहर काम करने पर भी लागू होती है... औरतें बाहर ऑफिस आदि जगहों पर काम कर सकती है लेकिन अलाहिदा व्यवस्था होना चाहिए.... सफ़र के लिए अलाहिदा बसों आदि कि व्यवस्था हो वगैरह वगैरह... जिससे नारी की गरिमा भी बरक़रार रहेगी और नारी का सशक्तिकरण भी...... इस्लाम औरत पर एक भी ऐसी पाबन्दी नहीं लगाता जो नारी के अधिकार या इंसानियत के खिलाफ हो... एक भी नहीं...
Kashif Bhai "Hamari Anjuman" par bhi dhyaan den zaraa...mail me at swachchhsandesh@gmail.com
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारि है इस विषय पर और अधिक जानकारी अर्थात इस्लाम और नारी बारे में हमें
जवाब देंहटाएंकिताब में भी मिल जाती है
इस्लाम में पर्दा और नारी की हैसियत
250 प्रष्ठ ,
http://www.4shared.com/file/90291628/8eb1ab43/hindi-islam-men-parda-aur-nari-ki-hesiyat-hindi.html
सलीम भाई...मैने यही तो कहा है जो आप कह रहे है की औरत मर्द के पीछे नमाज़ पढ सकती है.... मैने उसके साथ बगल में खडे हो कर पढने को नही कहा....
जवाब देंहटाएंमुझे ऐसी कोई हदीस नही मिली जो "अलहिदा मस्जिद" पर ज़ोर देती हो....
अगर आपके पास हो तो दीजियेगा
"किस तरह हिफाज़त करते हैं हम कुरान की"
जवाब देंहटाएंबहुत से लोगों को देखा है कि वो तिलावत के बाद कुरान मजीद को हिफाज़त के साथ महफूज़ जगह पर रख देते हैं, पर हम जो कुरान या कुरान की आयात् हिफ्ज़ कर लेते हैं उनकी हिफाज़त क्यूँ नहीं करते? क्यूँ नहीं हम उस जगह की हिफाज़त करते जहाँ हमने आयात् हिफ्ज़ करके रखी है, हम उसी जगह पर कुरान की आयात् को रखते हैं जहाँ पर किना, फरेब, नफरत, बदनीयती, बेईमानी और हसद रखते हैं, हम उसी मुह से तिलावत भी करते हैं और उसी से गाली भी बकते हैं, कुरान की हिफाज़त तो हम उचाई पर रख कर कर देते हैं पर हम उस कुरान की हिफाज़त क्यूँ नहीं करते जो हमारे दिलों में हिफ्ज़ है ! इसलिए मेरी गुजारिश उन सभी लोगों से है कि वो इस इस दिल और ज़बान का ख्याल रखें और हिफाज़त करें उस कुरान की जो आप के सीने में हिफ्ज़ है !
बहुत उम्दा लेख....सच्ची बात कही है आपने मेरा भी रमज़ान से घर में झगडा चल रहा है
जवाब देंहटाएंjo sab karte hen jaruri nahi ki vahi such ho HAQUEko janne ke liye
जवाब देंहटाएंhum men se her ek ko persanally QURAN AUR HADEATH ka mutta-alla
karna hoga
आपने बाजमत नमाज पड़ने के बारे में तो बताया और वजाहत भी की बात सही है लेकिन आप ने उमर फारूक रजिo का बयान फ़ितने के मुतालिककि औरते घरो में नमाज अदा करे, उसकी वजाहत नहीं की उस हदीस का क्या मतलब है और उसके पेसे नजर क्या किया जाये ..वजाहत करे.
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