बुधवार, 1 जुलाई 2009

क्या कुरआन को समझ कर पढना ज़रुरी है? अन्तिम भाग

स लेख के पहले तीन भाग आपने पढें होगें। अगर नही पढें है तो यहां पढ सकते है.....भाग-१, भाग-२, भाग-३।
कुछ लोग है जो ये भी कहते है की कुरआन मजीद को अरबी मे पढना बिल्कुल ज़रुरी नही है सिर्फ़ तर्जुमा पढना ही काफ़ी है। एक मुस्लमान उस तरफ़ जा रहें है जो कह रहें है की कुरआन मजीद को समझ के पढों ही मत और दुसरी तरफ़ जो बहुत माड्र्न मुस्लमान है वो कहते है की अरबी मे पढ कर फ़ायदा क्या है? अल्लाह तआला फ़र्माते है सुरह निसा सु. ४ : आ. १७१ में "आप दीन के अन्दर जास्ती मत कीजिये" जास्ती का मतलब है की दायरे के बाहर मत जाइये। अरबी पढने के भी फ़ायदे है अल्लाह तआला फ़र्माता है सुरह अनकबुत सु. २९ : आ. ४५ में "आप पढों उस आयत को जो अल्लाह ने नाज़िल की इस किताब मे"। यानि अरबी मे पढना आपकॊ फ़ायदा पहुचायेगा। अल्लाह के नबी सल्लाहो अलैह वसल्लम फ़र्माते है "जो कोई एक हुर्फ़ कुरआन मजीद का पढता है उसे दस सवाब है" (१००३ : तिर्मिधी)। अल्लाह एक हुर्फ़ नही है "अलीफ़" एक हुर्फ़ है, "लाम" एक हुर्फ़ है, "ह" एक हुर्फ़ है, अगर आप अल्लाह पढेंगे तो आपको १० + १० + १० = ३० सवाब या नेकी मिलेंगी। अरबी पढने का भी सवाब है लेकिन हम हर रोज़ इतने गुनाह करते है, इतनी गलतियां करते है, तो क्या ये ३० नेकी काफ़ी है हमें जन्नत ले जाने के लिये? हमें अल्लाह के अज़ाब से बचाने के लिये? अगर आप कुरआन मजीद को पढेंगे, और समझेंगे, और अमल करेंगे तो सैकडों गुना सवाब मिलेगा। हदीस मे आता है इब्ने माज़ा अध्धाय. १६ : ह. २१९ अल्लाह के रसुल कहते है "या अबुदर तुम अगर एक आयत को समझोगें तो वो सौ रकात नफ़ील से बेहतर है"। अल्लाह के रसुल फ़र्माते है की एक आयत को समझोगे तो वो सौ रकात नफ़ील से बेहतर है, आप अगर नमाज़ पढेंगे तो कम से कम सुरह: फ़ातिफ़ा तो पढेंगे, एक रकात मे कम से कम सात आयते है तो सौ रकात मे सात सौ आयते हुई.........इसका मतलब एक आयत को समझ कर पढना सात सौ आयत को पढने से बेहतर है। इसका मतलब की आयत को समझना, आयत को पढने से सात सौ गुना बेहतर है।

जब लोगो से पुछते है की कुरआन शरीफ़ क्यौं नाज़िल हुआ? तो लोग कहते है कि जब दुकान या आफ़िस की ओपनिंग हो तब कुरआन शरीफ़ पढना चाहिये, जब नये घर मे बसें तो कुरआन शरीफ़ पढना चाहिये, जब कोई मर जाये तो कुरआन शरीफ़ पढना चाहिये, कुरआन खानी करनी चाहिये, कुरआन शरीफ़ को नाज़िल कुरआन खानी के लिये नाज़िल किया गया था। बहुत से लोग खतमें कुरआन करते है दो बार, तीन बार, चार बार, रमज़ान मे खतमें कुरआन का मुकाबला सा हो जाता है अच्छी बात है आपकॊ सवाब मिलेगा। लेकिन मेरी राय ये रहेगीं की आप इतनी बार खतमें कुरआन करते हैं तो एक बार अरबी मे पढों और एक बार तर्जुमा पढों वो बेहतर है कम से कम समझ मे तो आयेगा।


और आप लोग चाहते है की जब दुकान और आफ़िस की ओपनिंग हो तो कुरआन खानी हो, जब नये घर में जायें तो कुरआन खानी हो, जब कोई मर जाये तो कुरआन खानी हो, तो मैं कुरआन की ऐसी कोई आयत या सही हदीस मैं नही जानता हूं की मुह्म्मद सल्लाहॊ अलैह वसल्लम या सहाबा किसी की मौत पर कुरआन मजीद पढते थें, या जब दुकान या नये घर की ओपनिंग पर कुरआन मजीद पढतें थे, इसका कोई सबुत नही हैं। लेकिन अगर आपको कुरआन पढने ही है और आप १०० मील की रफ़्तार से कुरआन पढते है तो मैं कहता हु की साथ मे तर्जुमा भी पढों, आप तीस लोगो को बुलाते हो तो साठ को बुलाओ एक आदमी आधा पारा अरबी मे पढें और आधा फ़िर तर्जुमा पढें।
इस मौके पर कुरआन पढना कही हदीस मे लिखा नही लेकिन कम से कम आपकी कुछ समझ मे तो आयेगा और हो सकता है आप समझने के बाद उस पर अमल करें इसीलिये क्यौंकी कुरआन मजीद को समझ के पढना बहुत ज़रुरी है। सिर्फ़ पढना काफ़ी नही है उसकॊ पढों, समझों और अमल करों तो इन्शाल्लाह आप जन्नत मे जायेंगें।
हम लोग कुरआन को बहुत इज़्ज़त देतें है, उसको इतनी इज़्ज़त देतें है की उसकॊ अलमारी के सबसे उपर के खाने मे रखते है उसे इतना उपर रखते की अगर पढने की चाहत हो चढना, निकालना, बहुत भारी लगता है और वहां ऊचाई पर उसके उपर धूल आती है। जो किताब हम रोज़ इस्तेमाल करना चाहते है तो वो किताब ऐसी ऊचाई पर रखनी चाहिये की आसानी से उसे निकाल सकें। कुरआन मजीद हमारे लिये एक हिदायत की किताब है, रोज़ की ज़िन्दगी के लिये हिदायत की किताब है तो उसे ऎसी जगह रखिये ताकि फ़ौरन उसे हासिल कर सकें और पढ सकें।
कुछ लोग कुरआन मजीद को मखमल के कपडें मे कस कर लपेट का रखते है, वो उसको इतना कसकर बाधं देते है की अगर पढने का दिल हुआ तो उसे खोलने के लिये पांच मिनट, उसे बाधंने के लिये पांच मिनट और मेरे पास तो सिर्फ़ दस मिनट है जाओ रहने दो नही पढते। इज़्ज़त देना चाहिये अच्छी बात है लेकिन सिर्फ़ ऊपर की और दिल मे इज़्ज़त नही तो ऐसी इज़्ज़त बेकार है, हम कुरआन मजीद को हाथ लगाने से पहले हज़ार चीज़े सोचते है जैसे वो आरडीएक्स बम है जो हाथ लगाने से फ़ट जायेगा, मैनें जुता पहना है मैं हाथ लगा सकता हुं की नही? मेरा वुज़ु नही है हाथ लगा सकता हुं की नही? मैं खडा हूं तो पढ सकता हूं की नही? मैं गाडी मे सफ़र कर रहा हूं कुरआन पढ सकता हूं की नही? मैं आफ़िस में हू पढ सकता हूं की नहीं?
कुरआन मे कहां लिखा है की सफ़र मे मत पढों, आफ़िस मे मत पढों, खडें हो कर मत पढों, जुते पहन के मत पढो, बगैर वुजु के मत पढो, ये सब हमारी गलतफ़हमियां है कुरआन मजीद रोज़ पढने वाली किताब है उसे रोज़ पढना चाहिये। इज़्ज़त दीजिये अच्छी बात है मैं ये नही कहता की इज़्ज़त मत दीजिये लेकिन इतनी मत दीजिये के उसका मकसद खत्म हो जायें। मै पढना चाहता हूं लेकिन मैं आफ़िस मे हूं इसलिये मैं नही पढूगां, मैं पढना चाहता हूं लेकिन मेरा वुज़ु नही है तो नही पढूगां। वुज़ु होना अफ़ज़ल है लेकिन फ़र्ज़ नही है कुछ लोग कहते है लेकिन कोई दलील नही हैं।
इब्ने हज़र जिन्होने तफ़सील लिखी "सही बुखारी" की वो कहते है की कुरआन मजीद को हाथ लगाने की कोई शर्त नही है लेकिन आप वुज़ु मे है तो अफ़ज़ल है। अफ़ज़ल तो यह है की कम से कम आप इसे पढ कर अमल तो करो आप कह रहे हैं उर्दु मे है तो मैं पढुगां नही। हमारे बीच मे बहुत सारी गलतफ़हमियां है कुरआन मजीद को लेकर।
आप अरब मे जायेंगे तो वहां देखेगे की नमाज़ मे दस मिनट बाकी है तो वो लोग कुरआन मजीद निकालेगें और पढेगें वो लोग अरबी ज़बान जानते है तो उन्हे तर्जुमा की ज़रुरत नही है हमारे यहां भी चन्द मस्जिदों मे कुछ लोग है जो पढते हैं लेकिन सिर्फ़ पहली सफ़ मे पढते है अगर कोई दुसरी सफ़ मे पढता होगा तो लोग उसका कान पकडते है की आप कुरआन मजीद दुसरी सफ़ मे कैसे पढ रहे हों? पहली सफ़ वाले की पीठ है कुरआन मजीद की तरफ़ आप बेउम्मती कर रहे है कुरआन की। आप अरब जाईये वहां जो बच्चे कुरआन पढना सीखते है उन सब मे से आधे छात्रों की पीठ दुसरों के कुरआन की तरफ़ रहती है वहां लोग पढते है और अगर आप मस्जिद मे कुरआन मजीद पढ रहे है और आपकी पीठ काबे की तरफ़ है तो आपकी खैर नही आपको खुब सुनाया जायेगा की आप काबे की तरफ़ पीठ करके कुरआन मजीद पढ रहे है आपको इतना भी नही पता। कुरआन और हदीस मे कही नही लिखा है की काबे की तरफ़ पीठ करके पढना हराम है।
आप अरब जायें तो उस्ताद काबे की तरफ़ चेहरा करके बैठता है और सारे तुल्बा (छात्र) काबे की तरफ़ पीठ करके बैठते है। कहीं भी नही लिखा है की काबे की तरफ़ पीठ करके कुरआन मजीद नही पढना चाहिये ये सब हमारी गलतफ़हमियां है जिन्हे हमें दुर करना चाहिये और कुरआन मजीद को ऐसी किताब बनाना चाहिये जो हर रोज़ हमें हिदायत दे, हर रोज़ उसे पढना चाहिये, उसे समझना चाहिये और उस पर अमल करना चाहिये। हम उसे इतनी इज़्ज़त देते है की उसका मकसद ही खत्म हो जाता है।
एक चुटकुला पेश करना चाहता हूं की हिन्दुस्तान के बहुत मशहुर "कारी" (कुरआन के अल्फ़ाज़ो को सही तरीके से बोलकर पढने वाला) सऊदी अरब गये थे और मगरीब का वक्त हो चुका था, अज़ान हो चुकी थी, वहां के लोगो ने कहा की हिन्दुस्तान के इतने अच्छॆ कारी आये हुए है तो आप ही इमामत कीजिये, आप नमाज़ पढायें तो उन्होने नमाज़ पढायी, बहुत अच्छी "किराअत" की।
नमाज़ के बाद एक अरब कारी साहब को देख के मुस्कुराया तो कारी साहब ने उससे पुछा क्या आपको मेरी किराअत पसन्द नही आयी? तो वो अरब बोला माशाल्लाह आपने बहुत अच्छी किराअत की लेकिन मैं सोच रहा था की मगरीब की नमाज़ मे आपने युसुफ़ अलैहस्सलाम को कुऎ मे डाला लेकिन नमाज़ पुरी होने से पहले बाहर क्यौं नही निकाला? जो लोग कुरआन मजीद तर्जुमें से पढ चुकें है वो जान चुकें होंगे की क्या चुट्कुला है? सुरह युसुफ़ मे ज़िक्र है की युसुफ़ अलैहस्सलाम के भाई युसुफ़ अलैहस्सलाम को कुऎ मे डालते है फ़िर कुऎ से बाहर निकालते हैं ये सारा जिक्र कुरआन मजीद मे सुरह युसुफ़ मे है। तो कारी साहब ने सुरह युसुफ़ की तिलावत की, युसुफ़ अलैहस्सलाम को कुऎ मे डाला और युसुफ़ अलैहस्सलाम को कुऎ से निकालने से पहले की नमाज़ खत्म हो गय़ी इसका मतलब ये है की कारी साहब ने तिलावत तो अच्छी की लेकिन उन्होने क्या पढा ये उन्होने समझा नही। ये सिर्फ़ एक चुट्कुला है
तो हमें कुरआन मजीद की इज़्ज़त करनी चाहिये लेकिन सबसे बढी इज़्ज़त है दिल मे, तो कुरआन को समझ कर पढे और उस पर अमल करें। अल्लाह तआला फ़र्माते है सुरह मुहम्मद सु: ४७ : आ. २४ में "आप क्या कुरआन को नही समझते? क्या आपका दिल इतना सख्त है? क्या आप के दिल पर ताले लग गये?"। अल्लाह तआला फ़र्माते है सुरह बकरह सु. २ : आ. १५९ में "अल्लाह तआला जब अपनी आयते नाज़िल करते है और आम करते है और आप उन्हे लोगो से छुपाते है तो आप पर अल्लाह तआला की लानत है"। अल्लाह तआला फ़र्माते है सुरह फ़ुरकान सु. २५ : आ. ३० में कि "मुहम्मद सल्लाहो अलैह वसल्लम अल्लाह से कहते है "या अल्लाह ये मेरी उम्मा (उम्मत) है जिसने कुरआन के साथ खिलवाड किया"। अल्लाह के रसुल शहादत देते है की ये मेरी उम्मा है जिसने कुरआन के साथ खिलवाड किया। तो हमारा फ़र्ज़ है की हम कुरआन मजीद को पढें और समझे।
कुरआन मजीद को पढने के दो तरीके होते है एक तज़्कुरे - कुरआन और एक तज़्बुरे - कुरआन। तज़्कुरे - कुरआन का मतलब है कुरआन मजीद को ऊपरी तौर पर पढना और तज़्बुरे - कुरआन का मतलब है कुरआन मजीद के माईनों को गहराई से तज़्बुर करना (गहराई से समझना)। हमारा फ़र्ज़ है कुरआन मजीद को समझ कर पढे और हर मुस्लमान के घर मे कुरआन मजीद का तर्जुमा होना चाहिये अगर आप अरबी ज़बान नही जानते हैं। सबसे बहतरीन किताब जो आप किसी को तोहफ़ा दे सकें वो है कुरआन मजीद। आप किसी के निकाह मे जायें, किसी के यहां दावत मे जायें, अपने बच्चे को तोह्फ़ा देना हो, तो सबसे बहतरीन किताब तोह्फ़े मे दीजिये कुरआन मजीद। और हमें चाहिये की घर मे रोज़ कम से कम बीस - पच्चीस मिनट घरवालॊं को लेकर कुरआन मजीद तर्जुमे से पढे, आपकी और आपके घरवालॊं की ज़िन्दगी इन्शाल्लाह बदल जायेगी।
और लेख के आखिर मे मै कहना चाहता हूं की अल्लाह तआला फ़र्माते है सुरह लुकमान सु. ३१ : आ. २७ में "की अगर आप सारे पेड को कलम मे तब्दील करेंगे और सारे समुंद्र, सात समुंद्र को स्याही मे बदलेंगे तो भी आप अल्लाह तआला की तारीफ़ नही लिख सकोगें"। अल्लाह तआला फ़र्माते है सुरह अल हशर सु. ५९ : आ. २४ में "अगर ये कुरआन पहाड पर नाज़िल किया जाता तो पहाड रेज़ा-रेज़ा हो जाता, टुक्डे-टुक्डे हो कर गिर जाता"। इसके माईने है की अगर पहाड को ज़रा भी एहसास होता और अल्लाह तआला इस कुरआन को पहाड पर नाज़िल करता तो वो पहाड रेज़ा - रेज़ा हो जाता लेकिन हम मुसलमानों पर इसका कोई असर नही होता। इसलिये मैं कहता हूं की कुरआन को पढिये, समझिये और उस पर अमल कीजिये।
अन्त मे एक हदीस पेश करना चाहता हूं सही बुखारी किताब. ६ : हदीस. ५४५ "हज़रत उस्मान रज़िअल्लाहो अन्हो फ़रमाते है की अल्लाह के रसुल सल्लाहो अलैह वसल्लम ने कहा - "सबसे बहतरीन वो लोग है जो कुरआन को समझते है और दुसरों को समझाते है"।

अल्लाह आप सबको कुरआन को पढकर और सुनकर, उसको समझने की और उस पर अमल करने की तौफ़िक अता फ़र्मायें।

आमीन, सुम्मा आमीन

3 टिप्‍पणियां:

  1. मैं समझ सकता हूँ कि इस लेख में आपने बहुत मेहनत की है, दुआगो हूँ अल्लाह मक़सद में कामयाबी दे,
    अल्लाह हम सबको ऐसी मेहनत करने की तौफीक दे,
    आमीन

    अल्लाह के चैलेंज
    islaminhindi.blogspot.com (Rank-2)
    कल्कि व अंतिम अवतार मुहम्मद सल्ल.
    antimawtar.blogspot.com (Rank-1)

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  2. काशिफ़ तुमने इस लेख को लिखने में जो मेहनत की है वो साफ़ दिख रही है.........अल्लाह तुम्हारी इस मेहनत को कामयाब करे

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  3. वाकई बहुत अच्छा लेख..!!! कुरआन को समझकर पढना ज़रुरी है

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