सोमवार, 22 जून 2009

क्या कुरआन को समझ कर पढना ज़रुरी है? भाग - 3

स लेख के पहले दो भाग आपने पढें होगें। अगर नही पढें है तो यहां पढ सकते है.....भाग-१, भाग-२

जो लोग कहते है कि आप अरबी कुरआन गैर-मुस्लमान को देगें और आपको सज़ा मिलेगीं तो मै कहता हुं की कोई हर्ज नही। अगर अल्लाह तआला मुझे ज़िम्मेदार ठहरायेगें अरबी कुरआन किसी गैर-मुस्लमान को देनें के लिये तो मैं हमारे आखिरी रसुल मुह्म्मद सल्लाहॊं अलैह वस्ल्लम के साथ हुं क्यौंकी मुह्म्मद सल्लाहॊं अलैह वसल्लम की सिरत से हमें ये मालुम होता है की मुह्म्मद सल्लाहॊं अलैह वसल्लम ने गैर-मुस्लमान राजाओं को खत लिखवायें उन्होने सहाबा से कहा की खत लिखों और इन खतों मे कुरआन की आयत भी लिखवायीं। कई बादशाहों को लिखा यमन के बादशाह, मिस्र के बादशाह, बादशाह हरकुलिस। कई बादशाहॊं को लिखा सहाबाओं के ज़रियें की आप इस्लाम कुबुल कर करों और उन खतों के अन्दर कुरआन की आयत लिखवायी, कई बादशाहॊं ने इस्लाम कुबुल किया और कई बादशाहॊं ने खत को फ़ाडं दिया और पैर के नीचे मसला। ऎसा एक खत मौजुद है कोप्टा के अजायबघर मे जिसके अन्दर अल्लाह के रसुल सुरह अल इमरान सु. ३ : आ. ६४ लिखवातें हैं उस मे ज़िक्र है "कहों अहलेकिताब (ईसाई) से की आऒ उस बात की तरफ़ जो आप और हम मे समान है सबसे पहली बात है की अल्लाह सुब्नाह वतआला एक है, अल्लाह के साथ किसी को शरीक न करें, हम आप और हम में से अल्लाह के अलावा किसी को रब ना बनायें, अगर वो फिर भी न मानें तो आप शहादत दो की हम मुस्लिम है"। इस कुरआन मजीद की आयत मे अल्लाह हमें एक तरीका बताते है की कैसे गैर-मुस्लमानॊं से बात करनी चाहियें और उन्हें इस्लाम की दावत देनी चाहियें।



मैं आप लोगों से एक सवाल पूछ्ता हू की आज की तारिख मे लगभग डेढ करोड अरब है जो कोपटिक क्रिसशन (ईसाई) है, एक करोड पचास लाख अरब हैं जो जन्म से ईसाई है। मैं आपसे पूछ्ना चाहता हू की एक अरब ईसाई को आप कौन सा तर्जुमा देंगे? अरबी तो उसकी मार्तभाषा है तो क्या आप कुरआन का फिर से अरबी में तर्जुमा करेंगे। आप उसको अरबी का कुरआन देंगे।


मारा फ़र्ज़ है की हम कुरआन को पढे, उसकों समझें, उस पर अमल करें और दुसरे लोगों तक कुरआन का पैगाम पहुचायें। अकसर कई मुस्लमान कहते है की कुरान मजीद को सिर्फ़ आलिम लोग ही समझ सकतें हैं, उन्हे ही पढना चाहिये, ये बहुत कठिन किताब है और इसको आलिम ही समझ सकते हैं। मैं आपको कुरआन मजीद की एक सुरह बताता हू जिसके अन्दर कम से कम चार बार दोहराते है, अल्लाह तआला फ़र्माते है सुरह कमर सु. ५४ : आ. १७, २२, ३२, ४०, में "हमनें कुरआन आपके लिये आसान बनाया ताकि आप इसें समझ सकें, आप इसे याद रख सकें, हमनें ये कुरआन मजीद आपकें समझनें के लिये आसान बनाया, आप में से कौन शख्स इसकी बात नही मानेगा"। जब अल्लाह तआला ने कुरआन मे कई आयतों मे फ़र्माया की हमनें कुरआन आपके लिये आसान बनाया तो आप किसकी बात मानेंगे अल्लाह की या उस मुस्लमान की जो कहतें हैं की सिर्फ़ उल्मा के लिये है। और अल्लाह तआला कई आयतों मे फ़र्मातें है सुरह बकरह सु. २ : आ. २४२ में "फ़िर आप नही समझोगें"। यानी अल्लाह तआला चाहतें है की आप कुरआन मजीद को समझ के पढॊं लेकिन अल्लाह तआला इसके साथ मे ये भी फ़र्माते है सुरह नहल सु. १६ : आ. ४३ और सुरह अम्बिया सु. २१ : आ. ७ में "अगर आप कुछ चीज़ को नही समझते है तो उनसे पूछिये जिसके पास इल्म है"। मान लिजिये कि आप कुरआन का तर्जुमा पढ रहे है और आपको कुछ आयतें समझ मे नही आती है तो कुरआन मजीद मे अल्लाह तआला ने बता दिया है की आप उनसे पूछिये जिनके पास इल्म है। अगर आप कुरआन मजीद की आयत पढते है जिसमें साइंस का ज़िक्र है तो आप किस से पूछेंगे? अपने पडोसी से जो हज्जाम है? नही आप साइंटिस्ट से पूछेंगे क्यौंकी साइंटिस्ट साइंस का आलिम है।

गर कुरआन मे बीमारी का ज़िक्र है तो किस से पूछेंगे? आप डाक्टर से पूछेंगे क्यौंकि डाक्टर दवाई के मैदान मे माहिर और आलिम है। अगर आप ये जानना चाहते है की कुरआन की ये आयत कब नाज़िल हूई तो आप उस से पूछेंगे जिसने दारुल उलुम मे सात - आठ साल पढाई की है तो कुरआन मे ये ज़िक्र आता है कि उनसे पूछिये जिनके पास इल्म हैं।

मैं आपको एक मिसाल देना चाहूगां कुछ बीस साल पहले कुछ अरब कुरआन मजीद मे जितनी भी आयतें है जो एम्रोलोजी के बारे मे ज़िक्र कर रही है। एम्रोलोजी का मतलब है मां के पेट के अंदर कैसे बच्चा बडा होता है उसकी पुरी जानकारी। तो कुरआन मे जितनी आयतों में ज़िक्र होता है की कैसे मां के पेट मे बच्चा बडा होता है उन सब आयतों का तर्जुमा लेकर वो जाते है प्रों. कीथ मूर के पास और उस वक्त प्रों. कीथ मूर सारी दुनिया के सबसे माहिर एम्रोलोजिस्ट थें, हैड आफ़ दा डिपार्ट्मेट आफ़ एनोटोमी, यूनिव्रसिटी आफ़ टोरंटो. कनाडा। वो ईसाई थे लेकिन अल्लाह तआला फ़र्माता है की उनसे पूछिये जो माहिर है चाहे वो मुस्लमान हो या गैर-मुस्लमान। तो ये अरब उन्हे कुरआन मजीद का तर्जुमा पेश करते है कि जिसके अन्दर ज़िक्र आता है कि कैसे मां के पेट के अंदर बच्चा बडा होता है। वो जब कई आयतों का तर्जुमा पढते है तो प्रो. कीथ मूर कहते है कि "अकसर जो आयतॊं मे ज़िक्र है वो आज की माडर्न एम्रोलोजी से मिलती जुलती है लेकिन चंद आयते है जिनके बारे मे ये नही कह सकता की ये सही है। मैं ये भी नही कहता हू की ये गलत है क्यौंकी मैं खुद नही जानता"। उन आयतों मे दो आयतें ये थी जो सबसे पहले नाज़िल की गयी थी सुरह इकरा या सुरह अलक सु. ९६ : आ. १-२ जिसमें अल्लाह तआला फ़र्माते है "पढों अल्लाह के नाम से जिसने इन्सान को बनाया है खून के लोथडें से, लीच से, जोंक से"। प्रों. कीथ मूर ने कहा मैं नही जानता की बच्चा जब मां के पेट के अन्दर बडा होता है तो सबसे पहले लीच की तरह दिखता है, लीच का मतलब है जोंक जो खून चुसता है। तो प्रो. कीथ मूर अपनी लेबोरेट्री के अन्दर गये और एक बहुत पावरफ़ुल माइक्रोस्कोप के अन्दर देखा की जो मां के पेट के अन्दर बच्चा जब अपनी सबसे पहली स्टेज मे होता है एकदम पहली मंज़िल उसको माइक्रोस्कोप के अन्दर देखते है और उसे जोंक की तस्वीर से मिलाते है और हैरान हो जाते है की हुबहु दोनों बिल्कुल एक जैसे है।

जब उनसे एम्रोलोजी के बारे लगभग अस्सी सवाल पुछे गये तो उन्होने कहा की अगर आपने ये सवाल मुझसे तीस साल पहले पुछे होते यानी आज से पचास साल पहले तो मैं पचास प्रतिशत से ज़्यादा सवालॊं के जवाब नहीं दे सकता था क्यौंकी एम्रोलोजी साइंस का वो हिस्सा है जो अभी चंद सालॊ मे ही कुछ तरक्की किया है। प्रो. कीथ मूर को जो भी नयी चीज़ मिली कुरआन और हदीस से उन्होने अपनी नई किताब "Developing Human" की तीसरी एडीशन मे शामिल किया और उस किताब को उस वक्त का नंबर वन किताब का अवार्ड मिला सबसे बहतरीन किताब जो एक डाक्टर ने लिखी है और इस किताब का अनुवाद कई ज़बानॊं मे किया जा चुका है।

इस किताब के ताल्लुक रखते कुछ लिन्क यहा मौजूद हैं......

http://www.geocities.com/aahem187/embryology.htm

http://www.islamic-awareness.org/Quran/Science/scientists.html

http://www.answering-islam.org/Responses/It-is-truth/chap03.htm

http://www.islamicvoice.com/january.97/scie.htm

http://www.thisistruth.org/truth.php?f=CreationOfMan

http://www.elsevier.com/wps/product/cws_home/712494


प्रो. कीथ मूर ने कहा "मुझे कोई एतराज़ नही ये मानने में की कुरआन मजीद खुदा की किताब है और मुझे कोई एतराज़ नही ये मानने मे की मुह्म्मद सल्लाहॊ अलैह वसल्लम खुदा के आखिरी पैगम्बर हैं"।

इस मिसाल से हमें ये मालुम होता है की जब भी आपको कुछ नही पता तो उससे पुछिये जो उस मैदान का माहिर है। जब भी आप कोई मशीन खरीदते है तो उसके साथ Instruction Manual युज़र गाइड आती है की किस तरह से मशीन को इस्तेमाल करना चाहिये। और आप अगर इज़ाज़त देंगे इन्सान को मशीन कहने के लिये तो ये हमें मानना पडेंगा की सबसे मुश्किल मशीन इन्सान है, सबसे पेचिदा मशीन इन्सान है। क्या इस मशीन के लिये कोई Instruction Manual युज़र गाइड की ज़रूरत नही? कोई किताब की ज़रुरत नही? इस मशीन की Instruction Manual युज़र गाइड है अल्लाह का आखिरी कलाम कुरआन मजीद, इस कुरआन मजीद मे लिखा हुआ है की किस तरह इस मशीन की हिफ़ाज़त करनी चाहिये? किस तरह इस मशीन को चलाना चाहिये? इस मशीन के लिये क्या क्या फ़ायदे है.....हर मशीन के साथ एक किताब आती है और इस मशीन इन्सान की किताब है अल्लाह का आखिरी कलाम कुरआन।

अगर आप कोई जापानी मशीन खरीदते है और उसके साथ Instruction Manual युज़र गाइड जापानी मे आपको मिलती है और जापानी आप समझतें नही हैं तो आप क्या करते हैं? आप दुकानदार से उस ज़बान की Instruction Manual युज़र गाइड मागंते है जो जिस ज़बान मे आपको महारत हासिल है ताकि आप समझ सकें की इस मशीन को कैसे इस्तेमाल करना है। तो अगर आप अरबी कुरआन मजीद को नही समझते है तो कम से कम इस कुरआन मजीद का तर्जुमा पढॊं और समझॊं और इस मशीन को सही तरह से इस्तेमाल करो।

मान लीजिये आप की कार खराब हो जाती है और कोई आप से कहता है की इसकी टंकी मे देसी घी डाल दो तो ये चलने लगेगी तो आप क्या करेंगे? उसकी बात मानेंगे नही क्यौंकी भले आप गाडीं सही करना नही जानते पर इतना जानते है की गाडी घी से नही चलती है। तो इसी तरह अगर हर मुस्लमान कुरआन को थोडा बहुत भी समझ कर पडें तो कोई भी आलिम, कोई भी मौलवी आपको बहका नही सकता, कोई भी आपकॊ गुमराह नही कर सकता है। आज के माहौल मे आप देखते है की मुस्लमान फ़िरकों मे बंटे हुए है एक आलिम ये कहता है, एक आलिम वो कहता है, अगर हम मुस्लमान कुरआन मजीद को समझ कर पढें तो कोई भी मौलाना आपको गुमराह नही कर सकता, कोई भी आलिम आपकॊ घुमा नही सकता।

ये आज मुस्लमानों की हालत जो है की सब जगह मुस्लमान पीटे जा रहे है क्यौंकी हम कुरआन मजीद समझ के नही पढते। अगर हम कुरआन मजीद समझ के पढें और इकट्ठा हो जाये तो इन्शाल्लाह हम मुस्लमानॊं के बीच कोई फ़िरका नही होगा। अल्लाह तआला फ़र्माते है सुरह अल इमरान सु. ३ : आ. १०३ में "आप अल्लाह की रस्सी को मज़बुती से पकडीये और आपस मे फ़िरके मत बनाइये"। अल्लाह की रस्सी क्या है कुरआन मजीद और मुह्म्मद सल्लाहो अलैह वसल्लम की सही हदीस अगर हम अल्लाह की रस्सी को मज़बुती से पकड लेंगे और आपस मे फ़िरके नही बनायेंगे तो इन्शाल्लाह हम एक बार फिर से दुनिया की ऊचाई पर पहुचेंगें।

बाकी अगली कडीं मे...
अल्लाह आप सब कुरआन पढ कर और सुनकर, उसको समझने की और उस पर अमल करने की तौफ़िक अता फ़रमाये।

आमीन, सुम्मा आमीन

3 टिप्‍पणियां:

  1. कुरआन को पढ़ना ही सिर्फ ज़रूरी नहीं है, बल्कि मायनों को समझते हुए पढ़ना बहुत ज़रूरी है....

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  2. जिसने कुरआन के मायनों को नही समझा तो उसका कुरआन पढना और ना पढ्ना एक बराबर है

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  3. काफ़ी अच्छा काम कर रहे हो... बधाई और जानकारी के लिये शुक्रिया

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