उपयुर्क्त हदीस से साबित होता है कि शरीर के अंगों से होने वाले गुनाह खत्म हो जाते हैं और अल्लाह के बन्दे बन्दी तमाम गुनाहॊं से पाक व साफ़ हो जाते है।
इसी अर्थ (मफहूम) की एक और हदीस उस्मान रज़िअल्लाहू तआला अन्हॊं से भी रिवायत है। कोई भी मुसलमान जो फर्ज़ नमाज़ के समय अच्छे ढंग से वज़ू करता है और नमाज़ में खुशू खुज़ू (विनर्मता) को अपनाता है और रुकू व सजदे को अच्छे ढंग से अदा करता है तो उसकी नमाज़ पहलें के गुनाहॊं का कफ्फारा (प्रायाश्चित) होती है जब उसने कबीरा (बडें) गुनाह न किये हों। इस तरह गुनाह का कफ़्फ़ारा हमेशा (सदैव) होता है।
अल्लाह के नबी फर्माते है कि बडें पाप (कबीरा गुनाह) तौबा और अल्लाह के फ्ज़लों करम से माफ़ हो जाते है, अहादीस की रोशनी में वज़ू नमाज़ और जमाअत सब गुनाहॊं को खत्म करने के माध्यम हैं और छोटे गुनाह हैं तो वज़ू आदि से माफ हो जाते है और बडे गुनाह (कबीरा) हों तो उसमे कमी हो जाती है अगर छोटे और बडे गुनाह न हों तो नेकियां लिखी जाती है और दर्जा बढा दिया जाता है।
बहुत अच्छी जानकारी शुक्रिया
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा जानकारी शुक्रिया
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