शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

ज़कात किसको देनी चाहिये?? Who deserve your "Zakaat"???

 रमज़ान का आखिरी अशरा (हिस्सा) चल रहा है इस अशरे में सब मुसलमान अपनी साल भर की कमाई की ज़कात निकालते है। ज़कात क्या है??? कुरआन मजीद में अल्लाह ने फ़र्माया है :- "ज़कात तुम्हारी कमाई में गरीबों और मिस्कीनों का हक है।" ज़कात कितनी निकालनी चाहिये ये काफ़ी बडा मुद्दा है इस मसले पर बहुत सारे इख्तिलाफ़ है, कोई इन्सान कुछ कहता है और कुछ कहता है| इस मसले पर हम विस्तार से बाद में बात करेंगे।

ज़कात निकालने के बाद सबसे बडा जो मसला आता है वो है कि ज़कात किसको दी जाये???

ज़कात देते वक्त इस चीज़ का ख्याल रखें की ज़कात उसको ही मिलनी चाहिये जिसको उसकी सबसे ज़्यादा ज़रुरत हो...वो शख्स जिसकी आमदनी कम हो और उसका खर्चा ज़्यादा हो। अल्लाह ने इसके लिये कुछ पैमाने और औहदे तय किये है जिसके हिसाब से आपको अपनी ज़कात देनी चाहिये। इनके अलावा और जगहें भी बतायी गयी है जहां आप ज़कात के पैसे का इस्तेमाल कर सकते हैं।


सबसे पहले ज़कात का हकदार है :- "फ़कीर"

फ़कीर कौन है??   फ़कीर वो शख्स है जिसकी आमदनी 10,000/- रुपये सालाना है और उसका खर्च 21,000/- रुपये सालाना है यानि वो शख्स जिसकी आमदनी अपने कुल खर्च से आधी से भी कम है तो इस शख्स की आप ज़कात 11,000/- रुपये से मदद कर सकते है।



दुसरा नंबर आता है "मिस्कीन" का

"मिस्कीन" कौन है??   मिस्कीन वो शख्स है जो फ़कीर से थोडा अमीर है। ये वो शख्स है जिसकी आमदनी 10,000/- रुपये सालाना है और उसका खर्च 15,000/- सालाना है यानि वो शख्स जिसकी आमदनी अपने कुल खर्च से आधी से ज़्यादा है तो आप इस शख्स की आप ज़कात के 5,000/- रुपये से उसकी मदद कर सकते है।

तीसरा नंबर आता है "तारिके कल्ब" का

"तारिके कल्ब" कौन है??   "तारिके कल्ब" उन लोगों को कहते है जो ज़कात की वसुली करते है और उसको बांटते है। ये लोग आमतौर पर उन देशों में होते है जहां इस्लामिक हुकुमत या कानुन लागु होता है। हिन्दुस्तानं में भी ऐसे तारिके कल्ब है जो मदरसों और स्कु्लों वगैरह के लिये ज़कात इकट्ठा करते है। इन लोगो की तनख्खाह ज़कात के जमा किये गये पैसे से दी जा सकती है।

चौथे नंबर आता है "गर्दन को छुडानें में"

पहले के वक्त में गुलाम और बांदिया रखी जाती थी जो बहुत बडा गुनाह था। अल्लाह की निगाह में हर इंसान का दर्ज़ा बराबर है इसलिये मुसलमानों को हुक्म दिया गया की अपनी ज़कात का इस्तेमाल ऎसे गुलामो छुडाने में करो। उनको खरीदों और उनको आज़ाद कर दों। आज के दौर में गुलाम तो नही होते लेकिन आप लोग अब भी इस काम को अंजाम से सकते है।

अगर कोई मुसलमान पर किसी ऐसे इंसान का कर्ज़ है जो जिस्मानी और दिमागी तौर पर काफ़ी परेशान करता है तो आप उस मुसलमान की ज़कात के पैसे से मदद कर सकते है और उसकी गर्दन को उस इंसान के चंगुल से छुडा सकते हैं।

पांचवा नंबर आता है "कर्ज़दारों" का

आप अपनी ज़कात का इस्तेमाल मुसलमानों के कर्ज़ चुकाने में भी कर सकते है। जैसे कोई मुसलमान कर्ज़दार है वो उस कर्ज़ को चुकाने की हालत में नही है तो आप उसको कर्ज़ चुकाने के लिये ज़कात का पैसा दे सकते है और अगर आपको लगता है की ये इंसान आपसे पैसा लेने के बाद अपना कर्ज़ नही चुकायेगा बल्कि उस पैसे को अपने ऊपर इस्तेमाल कर लेगा तो आप उस इंसान के पास जायें जिससे उसने कर्ज़ लिया है और खुद अपने हाथ से कर्ज़ की रकम की अदायगी करें।

छ्ठां नंबर आता है "अल्लाह की राह में"

"अल्लाह की राह" का नाम आते ही लोग उसे "जिहाद"  से जोड लेते है। यहां अल्लाह की राह से मुराद (मतलब) सिर्फ़ जिहाद से नही है। अल्लाह की राह में "जिहाद" के अलावा भी बहुत सी चीज़ें है जैसे :- बहुत-सी ऐसी जगहें है जहां के मुसलमान शिर्क और बिदआत में मसरुफ़ है और कुरआन, हदीस के इल्म से दुर है तो ऐसी जगह आप अपनी ज़कात का इस्तेमाल कर सकते है।

अगर आप किसी ऐसे बच्चे को जानते है जो पढना चाहता है लेकिन पैसे की कमी की वजह से नही पढ सकता, और आपको लगता है की ये बच्चा सोसाईटी और मुआशरे के लिये फ़ायदेमंद साबित होगा तो आप उस बच्चे की पढाई और परवरिश ज़कात के पैसे से कर सकते है।

और आखिर में "मुसाफ़िर की मदद"

मान लीजिये आपके पास काफ़ी पैसा है और आप कहीं सफ़र पर जाते है लेकिन अपने शहर से बाहर जाने के बाद आपकी जेब कट जाती है और आपके पास इतने पैसे भी नही हों के आप अपने घर लौट सकें तो एक मुसलमान का फ़र्ज़ बनता है की वो आपकी मदद अपने ज़कात के पैसे से करे और अपने घर तक आने का किराया वगैरह दें।

ये सारे वो जाइज़ तरीके है जिस तरह से आप अपनी ज़कात का इस्तेमाल कर सकते है।

अल्लाह आपको अपनी कमाई से ज़कात निकालकर उसको पाक करने की तौफ़ीक दें और
अल्लाह तआला हम सबको कुरआन और हदीस को पढकर, सुनकर, उसको समझने की और उस पर अमल करने की तौफ़िक अता फ़र्मायें।

आमीन,
सुम्मा आमीन



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3 टिप्‍पणियां:

  1. bhai meri BV ne to chaliswan hissa yani 2.5% zakat dedi, mujhe deni he aap bata do kiya ikhtalaf hen take men kam ziyad na de doon....Eid ke mauqe par is liye bhi di jati he ke jisse gareeb log bhi eid ki khushi men shamil ho jayen...

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  2. उमर भाई,

    आप जिस तरह देते हो उसी तरह ज़कात दे दीजिये क्यौंकि अभी मुझे पक्की तरह कुरआन और हदीस के पुरे सबुत नही मिलें है इसलिये मैं अभी कुछ नही लिखुंगा इसके ऊपर....

    बस इस बात का ख्याल रखें की ज़कात का जोड लगाते वक्त अपनी बचत, सोने के ज़ेवर में से खालिस सोने की कीमत लेना, हीरे पर ज़कात नही है, अपनी सारी पूंजी....इन सबको जोडकर उस पर ढाई परसेंन्ट दीजियेगा...

    बाकी जानकारी अपने लेख में दुंगा...

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत अच्छी जानकारी शुक्रिया....

    काशिफ़ जी बहुत अच्छा काम कर रहे है करते रहे.........हमारी दुआंये आपके साथ है....

    जवाब देंहटाएं

आपको लेख कैसा लगा:- जानकारी पूरी थी या अधुरी?? पढकर अच्छा लगा या मन आहत हो गया?? आपकी टिप्पणी का इन्तिज़ार है....इससे आपके विचार दुसरों तक पहुंचते है तथा मेरा हौसला बढता है....

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