गुरुवार, 17 सितंबर 2009

शबे-बारात क्या है? शबे- बारात की हकीकत?? What Is Shabe-Baarat?? Reality Of Shabe-Baaraat??

(अपडेट 17 सितम्बर  2009 02 : 00 PM :- इस लेख में मैनें उर्दु अलफ़ाज़ों का बहुत इस्तेमाल किया था तो दिनेशराय जी ने इसको ना समझ पाने की शिकायत की इसलिये मैं आम हिन्दी अफ़ाज़ों का इस्तेमाल कर रहा हूं)

अभी कुछ दिनों पहले पन्द्रह शअबान को पुरे हिन्दुस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में बडे ज़ोर शोर से शबे-बारात मनायी गयी थी। ये त्योहार सारे मुसलमान बहुत धुम-धाम से मनाते है। इस त्योहार को कुछ हिन्दु शिव की बारात से मिलाते हैं पढें सुरेश चिपलूनकर द्वारा लिखा गया ये लेख।


आज मैं आप लोगो को शबे-बारात की हकीकत बताने जा रहा हूं।


"शबे-बारात की हकीकत"
 "पन्द्र्ह शअबान की हकीकत"

 (याद रहे बिदअत गुनाहे कबीरा (सबसे बडा गुनाह) है। बिदअत से शैतान खुश होता है और अल्लाह की नाराज़गी हासिल होती है। बिदअत का रास्ता जहन्नुम की तरफ़ जाता है। लिहाज़ा तमाम मुसलमानों को बिदआत से बचना चाहिये।)

१) पन्द्र्ह शाबान को लोग "शबे-बारात" मान कर जगह-जगह, चौराहों, गली-कूचों में मजलिसें जमातें और झूठी रिवायात ब्यान करके पन्द्र्ह शअबान की बडी अहमियत और फ़ज़ीलत बताते हैं।

२) मस्जिदों, खानकाहों वगैरा में जमा होकर या आमतौर से सलातुल उमरी सौ रकआत (उमरी सौ रकआत), नमाज़ सलाते रगाइब (रगाइब की नमाज़), सलातुल अलफ़िआ (हज़ारी नमाज़) सलते गोसिया (शेख अब्दुल कादिर जिलानी रह०) के नाम की नमाज़ अदा करते हैं।

३) पन्द्रह शअबान की रात को "ईदुल अम्वात" (मुर्दों की ईद) समझ कर मुर्दों की रुहों का ज़मीन पर आने का इन्तिज़ार करते हैं।



४) शबे-बारात के दिन मकानों की सफ़ाई, बर्तनों की धुलाई, नये-नये कपडों को पहनते हैं, औरतें तरह-तरह के पकवान मसलन हलवा, पूडी, मसूर की दाल पकाती और नगमें गा-गा कर रात भर जागती हैं।

५) नियाज़ फ़ातिहा, कुरआन ख्वानी(कुरआन पढना), मज़ारों की धुलाई, कब्रों पर फ़ूल चढाना, गुलगुलों से मस्जिदों की ताकों को भरना, ये सारी बिदअतें व खुराफ़ातें पन्द्र्ह शअबान को आज का मोमिन करता है जिसका दावा था कि....


"तौहिद की अमानत सीनों में  है हमारें
आसां नहीं मिटाना नामो निशां हमारा"

           पन्द्र्ह शअबान के रोज़े से अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने मना फ़रमाया है। हदीस शरीफ़ में है  "जब निस्फ़ (आधा) शअबान हो तो रोज़े न रखों।" (अबूदाऊद, तिर्मिज़ी) निस्फ़ शअबान १५ तारीख से शुरु होगा लिहाज़ा पन्द्रह शअबान का रोज़ा नहीं रखना चाहिये।

           पन्द्र्ह शअबान से पहले चाहे जितने रोज़े रखलें। इसके अलावा चन्द खुराफ़ात जो दीन का नाम लेकर की जाती है मुलाहिज़ा फ़रमायें.......

हलवा :-  कहते है कि जंगे उहुद में अल्लाह के नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का दांत टूट गया था तो आपने हलवा खाया था इसलिये आज के दिन हलवा खाना सुन्नत है।

गौर कीजिये!!!!  अल्लाह के नबी सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लल्लम का टूटना जिहाद में, और लोगों का हलवा खाना अपने घरों में, जिहाद और जंग की सुन्नत रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम अदा करें और हलवा खाने की सुन्नत हम अदा करें???

                                कहा जाता है कि एक बुज़ुर्ग उवैस करनी को जब मालुम हुआ कि आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का दांत-ए-मुबारक शहीद हो गया तो उन्होने अपने दातों को पत्थर से तोड डाला और फ़िर उन्होने हलवा खाया लिहाज़ा ये उनकी सुन्नत है।
                                दांत तोडने का झूठा वाकया उनसे मन्सूब करके नकल कर दिया गया। फ़िर अपने दांतों को तोडना खुदकुशी की तरह है। आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने मुंह पर तमाचें मारने से मना फ़रमाया है (इब्ने माज़ा) तो मुंह पर पत्थर मारना कैसे जायज़ होगा???

                            कहा जाता है कि जिसका अज़ीज़ इस साल मर गया हो तो "अरफ़ा" करे यानी शबे-बारात से एक रोज़ पहले हलवा पकाकर नियाज़ फ़ातिहा दिला दें इस तरह इसका साल का नया मुर्दा बरसों पुराने मुर्दों में शामिल हो जायेगा। ये बात भी मनगढंत है।


शबे-बारात की हकीकत :- अल्लाह तआला ने कुरआन में फ़रमाया "इन्ना अन्जलनाहो फ़ी लयलतिम मुबारकातिन इन्नाकुन्ना मुन्ज़िरीन फ़ीहा युफ़रकओं कुल्लो अमरीन हकीम"


तर्जुमा :- "बिला शुबह हमने इस (कुरआन) उतारा है एक मुबारक रात में और हम इस किताब के ज़रीये लोगों को डराते हैं, इस रात में तमाम फ़ैसले हिकमत के साथ बांट दिये जाते है।" (मुबारक रात से मुराद शबे-कद्र है जैसा कि दुसरे मुकाम पर सराहत है।)

आयत :- "शहरौ रमज़ानल-लज़ी उनज़िला फ़ीही कुरआना" (सूर-ए-बकर)


तर्जुमा :- "रमज़ान के महीने में कुरआन नाज़िल किया गया।"

आयत :- "इन्ना अन्ज़लनाहो फ़ी लयलतिल कद्र" ( सूर-ए-कद्र)


तर्जुमा :- "हमने यह कुरआन शब-ए-कद्र में नाज़िल फ़रमाया।"

          यह शबे कद्र रमज़ान के आखिरी अशरे की ताक रातों में से ही कोई एक रात होती है। यहां कद्र की इस रात को मुबारक रात करार दिया गया है। इसके मुबारक होने में क्या शुबह हो सकता है?? कि एक तो इसमे कुरआन का नुजुल (नाज़िल) हुआ, दूसरें इसमें फ़रिश्तों और हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम का नुजूल (ज़मीन पर आते है) होता है। तीसरे इसमें सारे साल में होने वाले वाकियात का फ़ैसला किया जाता है।
         "सूर-ए-दोखान" की आयत में लैलते मुबारका से शअबान की पन्द्र्हवी रात मुराद लेना सही नहीं है क्यौंकि कुरआन की दुसरी आयत से उसका नुजूल शबे-कद्र में साबित हैं लिहाज़ा नुजूल की रात और फ़ैसले की रात रमज़ान के महीने के अलावा किसी दूसरे महीने में नही हो सकता।
          शबे-बारात की को लेकर जितनी भी रिवायात (बातें) आती हैं जिनमें उसकी फ़ज़ीलत का ब्यान है या उनमें इसे फ़ैसले की रात कहा गया है तो यह सब रिवायात ज़ईफ़ हैं यह कुरआन की आयात का मुकाबला नही कर सकतीं हैं।
               
             "जन्नतुल बकीं में प्यारे नबी सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का तशरीफ़ ले जाना"
हज़रत आयशा रज़ि अल्लाहो अन्हा का इरशाद इमाम बुखारी रह० ने बुखारी शरीफ़ में नकल फ़रमाया है --- "प्यारे नबी सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम जब भी मेरी बारी के दिन तशरीफ़ लाते तो जन्नत-उल-बकी ज़रुर जाते और मुर्दों के लिये अल्लाह तआला से दुआ करते।" (मुस्लिम शरीफ़ पेज ३१३ जिल्द ३)  
और वो रिवायत जिसे इमाम तिर्मिज़ी रह० ने रिवायत किया है जिसमें कहा गया है कि अल्लाह तआला बनू कल्ब की बकरियों से ज़्यादा अपने गुनाहगार बन्दों को माफ़ करता है यह रिवायत सख्त ज़ईफ़ और मुनकता (बहुत पुरानी और कमज़ोर जिसका कोई और सुबूत नहीं हो) है। 
        इस रिवायत को अल्लामा अनवर शाह कश्मीरी रह० शेखुल हदीस दारुल उलूम देवबन्द ने ज़ईफ़ (पुरानी और कमज़ोर जिसका कोई और सुबूत नहीं हो) कहा है।
       अल्लाह तआला पन्द्र्ह शअबान ही को नहीं बल्कि रोज़ाना दो तिहाई रात गुज़रने के बाद आसमाने दुनिया पर नुजूल (आता है) फ़रमाता है और कहता है :-  है कोई मुझसे दुआ करने वाला कि मैं उसकी दुआ कुबूल करुं, कोई मुझसे मांगने वाला है कि मैं उसे दूं, कोई मुझसे बख्शिश तलब करने वाला है कि मैं उसे बख्श दूं। (बुखारी पेज १५३ जिल्द १)
        मालूम हुआ कि आंहज़रत सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम जन्नतुल बकी जब भी हज़रत आयशा रजि० के यहां जब बारी होती तशरीफ़ ले जाते और अहले कब्रिस्तान के लिये दुआऎ मगफ़िरत करते। यह कोई पन्द्र्ह शअबान ही के लिये खास न था जैसा कि आजकल के बाज़ मुसलमान समझते है और ये भी मालुम हुआ कि अल्लाह तआला पन्द्रह शअबान ही को नहीं बल्कि रोज़ाना ही तिहाई रात गुज़रने के बाद आसमाने दुनिया पर तशरीफ़ लाता है और दुआ करने वाले की दुआ कुबूल करता है और बख्शिश तलब करने वाले की बख्शिश करता है।
पन्द्र्ह शअबान की रात में मस्जिदों, मकानों में चिरागां करना (चिराग जलाना), दीवारों, दरवाज़ों पर चिराग और मोमबत्तियां रखना और पटाखे चलाना और आतिशबाज़ी करना ये दिवाली की नकल है इसका किसी भी हदीस में कोई भी असल सुबूत नही है। यह आतिश परस्तों के तौर-तरीकों की नकल की एक झलक है जिसको आतिशपरस्तों ने अवाम को धोखें में मुब्तला करके राइज़ (राज़ी) किया था। काश मुसलमान इसकी हकीकत से वाकिफ़ होते और इससे बचते।
अल्लाह तआला हमें इन गलत रस्मों-रिवाजो से हटाकर हम सबको कुरआन और हदीस को पढकर, सुनकर, उसको समझने की और उस पर अमल करने की तौफ़िक अता फ़र्मायें।

आमीन,
सुम्मा आमीन









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35 टिप्‍पणियां:

  1. सामान्य हिंदी में बयान होता तो हम समझ पाते।

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  2. Pahle Apne Aap ko to Durust Kar lo Fir Islam Ko durust karne ki Socho.

    Pahle Apna Akida to Sahi Kar lo.

    Tumhare Jese Log hi Logo Ko islam Se Bhatkate Hai.

    Logo Ko Sahi Rah par Lane Se pahle tum Khud to Sunniyat ki Rah Apnao. Bad me dusro ko Sahi Rah Par lane ke bare me sochna. Pahle Islam ki Haqiqat ko Jano Bad me dusro ko Salah Dena.

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    उत्तर
    1. गौस साहब,बिल्कुल सही जवाब दिया आपने

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    2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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    3. Yahi log tabligi talibani hai... Jinke sine me Mohabbat ni vo Islam Ka ho hi ni skta... Jese ki Tu wahabi kbi imaan vala ni ho skta is aqide se

      हटाएं
  3. daro us allaha ke rasool se jiske baare me tumne jhoot bola hai .....kamino tum sab dozakh me jaooge

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  4. @दिनेशराय जी,

    इस तरफ़ ध्यान दिलाने के लिये शुक्रिया.....मैने ये कमी दुर कर दी है अब आप इस लेख को पढ सकते है.....और कोई कमी हो तो आपकी टिप्पणी चाहुंगा...


    @फ़कीर मौह्म्मद और सैयद फ़ैज़ हुसैन साह्ब

    आप लोगो ने मुझे तो भला-बुरा कह दिया लेकिन मेरे इस ब्लोग पर इस्लाम के मुतालिक जो बात होती है वो कुरआन और हदीस की रौशनी में होती है.....

    तो अगर आप लोगो के पास ऐसा कोई सुबूत हो तो पेश करे....


    भला-बुरा तो सब कह लेते है लेकिन सही सुबूत के साथ कोई गलत साबित नही कर पाता है...

    और ये कोई नयी बात नही है जो लोग शबे-बारात, मोहर्रम, टिकियां, ग्यारवीं वगैरह मनाते है उन लोगों से जब भी उनसे बात करो तो उनके पास कोई सुबूत नही होता है.....वो भी ऐसे ही गाली देकर, भला-बुरा कह कर चले जाते है..

    आपके पास कोई सुबूत हो तो लाओं मैं यहां आपका इन्तेज़ार कर रहा हूं और इन्शाल्लाह अल्लाह ने चाहा तो आपको हर सवाल का कुरआन और हदीस से जवाब मिलेगा...

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    उत्तर
    1. Main Bilkul Sehmat Hoon Aapki Baat Se,

      Ilm Walon Ke Paas Daleel Aur Jahil Ke Paas Gali,

      Ye Aam Si Baat Hai,

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    2. Ye kisi dogle se Kam bada nhi hai Islam ke bare me गलत लिखा है
      तेरा क्या होगा पता नहीं बेसक अल्लाह जानता है
      कन्ही तू भी अंधभक्त तो नहीं

      हटाएं
    3. महेन्दर पाल आर्य ने सारे इस्लाम जगत को चैलेंज किया है क़ुरान पर डेबिट करने को आज तक कोई जबाब नहीं आया है क्युकी वो जानते है उनकी पोल खुल जाएगी इसलिए ?
      Contact numbers
      9810797056
      9810879056
      Email
      Mahendrapalarya@hotmail.com

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  5. ५) नियाज़ फ़ातिहा, कुरआन ख्वानी(कुरआन पढना), मज़ारों की धुलाई, कब्रों पर फ़ूल चढाना, गुलगुलों से मस्जिदों की ताकों को भरना, ये सारी बिदअतें व खुराफ़ातें पन्द्र्ह शअबान को आज का मोमिन करता है जिसका दावा था कि....

    जनाब काशिफ़ साह्ब इन लाइनो पर गौर करे
    नियाज़ फ़ातिहा, कुरआन ख्वानी(कुरआन पढना)
    इस लाइन मे ये लफ़्ज़ आपने बिदअत के साथ क्यो लिखे मुझे समझ नहीं आ रहा हॆ ।

    कभी भी और किसी भी दिन में
    किसी मरहूम को पडकर बख्शना {नियाज़,फ़ातिहा},या .कुरआन का पडना
    क्या बिदअत या खुराफात होता हॆ ?
    गौर करें ।

    अगर मुझ से समझने मे कोई गलती हुई हो तो मॆं माफ़ी चाह्ता हूं ।
    A.U.SIDDIQUI

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  6. @ ऐ.यु.सिद्दिकी साहब,

    आप मेरे ब्लोग पर आये और अपना सवाल उठाया उसका बहुत-बहुत शुक्रिया..!!!!

    पहली बात आपके पढे कुरआन का सवाब सिर्फ़ आपको मिलेगा और किसी को नही.....चाहे आप कितनी नियाज़ या फ़ातिहा दे लें उस म्ररहुम के हिस्से में कुछ नही जाना..!!!!

    आप कुरआन पढियें और फ़िर उस मरहुम के हक में दुआ कीजिये तो वो ठीक है लेकिन इसके लिये किसी खास दीन की ज़रुरत नही है...॥

    आप रोज़ कुरआन पढों और रोज़ दुआ करों कोई मनाही नही है...लेकिन आप ये सोचें की 10 बच्चे मस्जिद से आये और वो तुफ़ानी रफ़्तार से पुरा कुरआन पढ गये तो आपके मरहुम की बख्शिश हो जायेगी तो इसका ज़िक्र कही नही है....

    एक बार को आपके किये हुऐ सदके का सवाब उसको मिल सकता है लेकिन अगर हिन्दुओं (सनातन) की तरह हर साल उनका श्राद या बरसी मनाकर नियाज़ या फ़ातिफ़ा करायेंगे तो इसका कहीं कोई ज़िक्र नही है....

    "ना ही हदीस में और ना ही कुरआन में"

    अगर आपको लगता है की मैं गलत कह रहा हूं तो इस बारे में तहकीक या जानकारी कीजिये और मुझे भी बताईये.....

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    उत्तर
    1. भड़वे की नस्ल कभी हदीस पढ़ी क्या तेरे बाप दादा ने भी कभी चूतिये की औलाद घटिया पोस्ट करके क्यों लोंगो को गुमराह करता है साला जहन्नम का कुन्दा

      हटाएं
    2. महेन्दर पाल आर्य ने सारे इस्लाम जगत को चैलेंज किया है क़ुरान पर डेबिट करने को आज तक कोई जबाब नहीं आया है क्युकी वो जानते है उनकी पोल खुल जाएगी इसलिए ?
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  7. जनाब काशिफ़ आरिफ़ साहब
    अस्सलामुआलेकुम व.र.व.ब.
    सबसे पहले आप को ईद की दिली मुबारकबाद
    आप शायद मेरी बात को समझ नहीं पाये, मॆं अपनी पूरी राय आपको
    मेल कर रहा हूं, क्योंकि ये कमेंट बाक्स उसके लिये छोटा हॆ।
    उम्मीद हॆ आप मुझे समझेंगे ।
    अल्लाह हाफिज़

    जवाब देंहटाएं
  8. काशिफ़ जी, आपकी बात में दम तो लग रहा है.... और जानकारी करनी पडेगीं

    जवाब देंहटाएं
  9. काशिफ़ जी, आपकी बात में दम तो लग रहा है.... और जानकारी करनी पडेगीं

    जवाब देंहटाएं
  10. Suresh ji aap se mera ek swal hain aap bolte ho ki is puri dunia ko bhagwn ne banaya hain but aapke jitne bhagwan hain kyun bharat main hi nikale jitne dharm isthaan sub India main hi kyun hain please sir main confusion clear kar dijiye jaha tak Islam ki baat hain puri duniya main hain

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    उत्तर
    1. Aapki baat sahi hai lakin ek baat meri bhi 1497 se pahle hindustan me bhi koi masjid nahi aur n hi islam hai fir is baat ka batangad bana rahe ho

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    2. 629 ईस्वी चेरामन जुमा मस्जिद
      Cheraman Juma Masjid kerla

      हटाएं
    3. महेन्दर पाल आर्य ने सारे इस्लाम जगत को चैलेंज किया है क़ुरान पर डेबिट करने को आज तक कोई जबाब नहीं आया है क्युकी वो जानते है उनकी पोल खुल जाएगी इसलिए ?
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  11. bahut acchi jankari
    allah sabhi ko biddat se bachye aur sahi rah dikhane
    amin

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  12. माशाअल्लाह बहुत अच्छी और उम्दा जानकारी क़ुरान और हदीस की रौशनी में आपने दिया....!!!
    अल्लाह हम सबको सही इल्म की जानकारी से मालामाल करे...आमीन और कम से कम आपकी इस मेहनत से हम गुमराही से बच के बिदअत से बचेंगे...
    मैं 100% TTS हूँ पर आपने जितना बयान किया है वो क़ुरान और हदीस की रौशनी में है...
    मेरा मानना है कि मेरे नबी ने दीन को मुकम्मल कर के पर्दा किये हैं और इसमें नए रीति रिवाज को दाखिल करना अल्लाह और रसूल के इल्म में कमी समझना है...
    इसलिए मैं 100% इत्तेफाक़ रखता हूँ....

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  13. काशिफ आरिफ, यही अक़ीदा तुमलोगों को मोमिन से दूर कर के यहूदियों की औलाद साबित करता है।

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  14. Pehli shabebarat lafz hadees mein kahin nhi aata aur iska manana bhi sabit nhi ye moulviyo ki bnayi hui raat hai Aur na hi maine kisi molvi ko isme namaz aur ibadat krte dekha balki takrir krke paisa kamate hain aur halwa dawat udate hai aur awaam ko morning is bidat mein phasaye hue hai

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  15. As slam alaikum
    Ye bat to Sach hai ke dunya me hi shi or glt dono chizen hain
    Jinko shi or glt ka ilm na ho unhe zyada bolna nhi chahiye
    Jin Logon ko is post se aitraz hai unhe chahiye k sabit kren hadish ki rousni me ye beaten kaise glt hain
    Muslman hokr khud ko sunni khne wale log kmsekm apni zuban ko shi krlen phle phir din ko smjhne ya smjhane ka kam kren

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  16. Can u explain why these words like, biddat, shirk, barzakh, etc. gained prominence after the unholy alliance of Wahabuddin and king Saud- for regaining the power and extending state patronage in return to the ideology of Wahabuddin. The basis of this new ideology is mutual self-interest which is hardly a century old. The form of Islam being propagated through money power now is entirely different from what existed prior to that unholy alliance. Albeit, more than three fourth muslims asin researchthe world practice moderate islam. Pl.do some research as a critic and then form an opinion.

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  17. Allah apko zajae khair de..bahot zabardast malumat quran aur hadis ke mutalya se..hame sirf quran aur hadis ko hi follow karna hai...

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  18. App logo se Mera Ek sawaal hai jab insaan aya is Duniya me to is Duniya ka naam tha
    Aur Mai Ye bhi Bta du App logo ko is Duniya ke do naam the ab app log Iska jawaab dijiye

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  19. Allah hu Akbar
    Beshak Jo Quran aur sahi hadees hwahi sachha deen h.

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आपको लेख कैसा लगा:- जानकारी पूरी थी या अधुरी?? पढकर अच्छा लगा या मन आहत हो गया?? आपकी टिप्पणी का इन्तिज़ार है....इससे आपके विचार दुसरों तक पहुंचते है तथा मेरा हौसला बढता है....

अगर दिल में कोई सवाल है तो पुछ लीजिये....

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