सोमवार, 20 जुलाई 2009

अल्लाह के चमत्कार...हर तरफ...!!! Miracle's Of Allah Everywhere

अल्लाह तआला के सिवा कोई पुज्य नही है और अल्लाह तआला को जो करिश्मा दिखाना था वो १४०० साल पहले कुरआन के रुप में सबको दिखा चुकें है लेकिन कुछ लोग है जो अब भी यकीन नहीं करते है ऐसे लोगो की आखें खोलने के लिये अल्लाह तआला ने इस दुनिया के लोगो को बहुत से चमत्कार दिखायें। ऐसी ही कुछ तस्वीरें और एक वीडियो मेरे पास काफ़ी दिनो से मौजुद थी तो मैने सोचा आप लोगो को भी दिखा दूं। अल्लाह तआला चाहे हर चीज़ पर और हर चीज़ से अपना नाम लिख सकता है चाहे वो बाद्ल में, समुंद्र में, आसमान में, पेड से,....

रुकु की हालत में पेड

ये पेड सिडनी, आस्ट्रेलिया के जंगल में पाया गया था। ये रुकु की हालत में है और इसका रुख काबे की तरह है जिस तरफ़ रुख करकें हर मुसलमान नमाज़ पडता है।












रविवार, 12 जुलाई 2009

"जिहाद" क्या है? What Is Jihad?

"जिहाद" के बारे मे बात करने से पहले हम दहश्तगर्दों के बारे में बात करेंगे क्यौंकी लोगो के "जिहाद" के बारे मे इन लोगो की वजह से पता लगा है। आप लोगो की नज़र में दहश्तगर्द कौन है? दहश्तगर्द का मतलब क्या है?

मेरे हिसाब से हर मुस्लमान दहश्तगर्द होना चाहिये। दहश्तगर्द का क्या मतलब है? दहश्तगर्द का मतलब है की "अगर कोई भी इन्सान दुसरे इन्सान के दिल मे दहशत पैदा करता है उसे कहते है दहश्तगर्द"। मिसाल के तौर पर जब कोई चोर किसी पुलिसवाले को देखता है तो उसके दिल में दहशत पैदा होती है तो उस चोर के लिये वो पुलिसवाला दहश्तगर्द है। तो इस हिसाब से हर असामाजिक तत्व, एन्टी-सोशल एलीमेन्ट, किसी मुस्लमान को देखे तो उसके दिल में दहशत पैदा होनी चाहिये। जब भी कोई चोर किसी मुसलमान को देखें तो उसके दिल में दहशत पैदा होनी चाहिये, जब भी कोई बलात्कारी किसी मुसलमान को देखें तो उसके दिल में दहशत पैदा होनी चाहिये। हर मुसलमान का फ़र्ज़ है कि वो लोग जो हक के खिलाफ़ है उनके दिल में दहशत पैदा करें और अल्लाह तआला फ़र्माते है सुरह अनफ़ाल सु. ८ : आ. ६० में कि "जो लोग हक के खिलाफ़ है उनके दिल में मुसलमानों को दहशत पैदा करनी चाहिये"। एक मासुम के दिल मे कभी भी दहशत पैदा नही करनी चाहिये उसे उनके दिल में दहशत पैदा करनी चाहिये जो खुसुसन हक के खिलाफ़ हैं, समाज के खिलाफ़ हैं, इन्सानियत के खिलाफ़ है।

बुधवार, 1 जुलाई 2009

क्या कुरआन को समझ कर पढना ज़रुरी है? अन्तिम भाग

स लेख के पहले तीन भाग आपने पढें होगें। अगर नही पढें है तो यहां पढ सकते है.....भाग-१, भाग-२, भाग-३।
कुछ लोग है जो ये भी कहते है की कुरआन मजीद को अरबी मे पढना बिल्कुल ज़रुरी नही है सिर्फ़ तर्जुमा पढना ही काफ़ी है। एक मुस्लमान उस तरफ़ जा रहें है जो कह रहें है की कुरआन मजीद को समझ के पढों ही मत और दुसरी तरफ़ जो बहुत माड्र्न मुस्लमान है वो कहते है की अरबी मे पढ कर फ़ायदा क्या है? अल्लाह तआला फ़र्माते है सुरह निसा सु. ४ : आ. १७१ में "आप दीन के अन्दर जास्ती मत कीजिये" जास्ती का मतलब है की दायरे के बाहर मत जाइये। अरबी पढने के भी फ़ायदे है अल्लाह तआला फ़र्माता है सुरह अनकबुत सु. २९ : आ. ४५ में "आप पढों उस आयत को जो अल्लाह ने नाज़िल की इस किताब मे"। यानि अरबी मे पढना आपकॊ फ़ायदा पहुचायेगा। अल्लाह के नबी सल्लाहो अलैह वसल्लम फ़र्माते है "जो कोई एक हुर्फ़ कुरआन मजीद का पढता है उसे दस सवाब है" (१००३ : तिर्मिधी)। अल्लाह एक हुर्फ़ नही है "अलीफ़" एक हुर्फ़ है, "लाम" एक हुर्फ़ है, "ह" एक हुर्फ़ है, अगर आप अल्लाह पढेंगे तो आपको १० + १० + १० = ३० सवाब या नेकी मिलेंगी। अरबी पढने का भी सवाब है लेकिन हम हर रोज़ इतने गुनाह करते है, इतनी गलतियां करते है, तो क्या ये ३० नेकी काफ़ी है हमें जन्नत ले जाने के लिये? हमें अल्लाह के अज़ाब से बचाने के लिये? अगर आप कुरआन मजीद को पढेंगे, और समझेंगे, और अमल करेंगे तो सैकडों गुना सवाब मिलेगा। हदीस मे आता है इब्ने माज़ा अध्धाय. १६ : ह. २१९ अल्लाह के रसुल कहते है "या अबुदर तुम अगर एक आयत को समझोगें तो वो सौ रकात नफ़ील से बेहतर है"। अल्लाह के रसुल फ़र्माते है की एक आयत को समझोगे तो वो सौ रकात नफ़ील से बेहतर है, आप अगर नमाज़ पढेंगे तो कम से कम सुरह: फ़ातिफ़ा तो पढेंगे, एक रकात मे कम से कम सात आयते है तो सौ रकात मे सात सौ आयते हुई.........इसका मतलब एक आयत को समझ कर पढना सात सौ आयत को पढने से बेहतर है। इसका मतलब की आयत को समझना, आयत को पढने से सात सौ गुना बेहतर है।

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