शुक्रवार, 27 नवंबर 2009

ईदुल अज़हा, बकरीद और कुरबानी के अहकाम व मसलें.. Matters & Compulsory Works Of Bakrid, Eid-Ul-Azha

इस साल ज़िलहिज़्ज़ा (इस्लामी महीने का नाम) का चांद १८ नवम्बर को दिखा है इस लिहाज़ से २८ नवम्बर को ईदुल ज़ुहा मनाई जायेगी। ईदुल ज़ुहा जिसे पुरे भारतीय उपमहाद्विप में "बकरीद" के नाम से जाना जाता है। बकरीद क्यौं मनाई जाती इसका लगभग सबको है तो इसलिये आज हम उन बातों पर गौर करेंगे जो करना ज़रुरी है लेकिन वो अकसर छुट जाती है और उन बातों पर गौर करेंगे जो बेवजह इस मुकद्द्स त्यौहार से जुड गयीं है।

तकबीरात :-  तकबीर, तहलील और तहमीद, यानि अल्लाह तआला की बडाई व बुजुर्गी ब्यान करना, उसको
                       एक मानना और उसकी तारीफ़ ब्यान करने को कहते हैं।
अश्रह ज़िलहिज़्जा में "अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर लाइलाहा इल्लल्लाहु वल्लाहुअकबर अल्लाहुअकबर वलिल्लाहिल हम्द" (दार कुतनी) पढने की खास ताकीद की गई है। (मुसनद अहमद) इन तकबीरों को ज़िलहिज़्जा (बकरीद) का चांद नज़र आने के बाद से 13 जिलहिज़्जा के सूरज छुपने तक चलते-फ़िरते, उठते-बैठते और नमाज़ों के बाद पढते रहना चाहिये। (बुखारी, मिरआत शरह मिश्कात)

                          कुछ उलमा ने लिखा है की तकरीबात 9 जिलहिज़्जा की फ़ज़्र से 13 जिलहिज़्जा की नमाज़ अस्र तक पढनी चाहिये, इस बारे सहाबा किराम (रज़ि.) के तौर-तरीके हदीस की किताबों में मिलते हैं मगर बेहतर और अफ़ज़ल सूरत यही है कि ज़िलहिज़्जा का चांद नज़र आने के बाद से 13 ज़िलहिज़्जा के सूरज छुपने तक तकरीबात पढें क्यौंकि ज़्यादातर सहाबा किराम (रज़ि.) का अमल यही मिलता है और इस सूरत पर अमल करने में तमाम बातों और तरीकों पर अमल भी हो जाता है।

शनिवार, 21 नवंबर 2009

राष्ट्रीयता के प्रश्न पर चर्चा करेगा अब ‘‘रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा’’ aziz-burney-final-shots-vande-matram

 आज "हमारी अन्जुमन" ब्लोग पर एक लेख पढा....ये लेख राष्टीय सहारा के एडीटर अज़ीज़ बर्नी साहब ने लिखा था........मेरे ब्लोग पर वन्दे मातरम को लेकर बहस चल रही है तो मैने सोचा ये लेख शायद कुछ लोगों की आंखें खोलने के काम आयेगा।

रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा के सम्पादक के रूप में मुझे भी इस बहस में शामिल होने की आवश्यकता पेश 

आएगी। बहरहाल आज का कड़वा सच यह है कि राष्ट्रीय स्तर पर यह बहस जारी है और हमने इस बहस को 

 

अंतिम चरण तक पहुंचाने के इरादे से इसमें शामिल होना स्वीकार कर लिया है।

 

AZIZ BURNEY ---- Group Editor Roznama Rashtriya Sahara (Daily) Bazme Sahara (Weekly) Aalmi Sahara (Monthly)


पहली कडी

इस समय मैं केवल एक लेखक, एक पत्रकार या एक सम्पादक की हैसियत से ही स्वयं को नहीं देख रहा हूं, और इस समय मैं स्वयं को बस एक मुस्लिम प्रतिनिधि के रूप में भी नहीं महसूस कर रहा हूं, बल्कि मेरी इस बात को एक निष्पक्ष रिसर्च इस्कोलर के शोध पर ही आधारित समझें तो किसी सही नतीजे पर पहुंच सकेंगे। आज का यह लेख निःसन्देह मेरे नियमित पाठकों के लिए लिये तो है ही परन्तु साथ में इस लेख के द्वारा अपने हमवतन भाई बहनों का ध्यान भी आकर्षित करना चाहता हूं इसलिए कि मेरे सामने राष्ट्रीय चिन्ह पर लिखी वह पंक्ति है जिस पर दर्ज है ‘‘सत्यमेव जयते’’ अर्थात सच्चाई की जीत होती है।

बुधवार, 18 नवंबर 2009

जिस तरह हिन्दु (सनातन) धर्म में दफ़नानें की इजाज़त नही है ठीक उसी तरह इस्लाम में सिर्फ़ एक खुदा (अल्लाह) है, किसी और की पुजा करने की इजाज़त नही है... As in Hindu (Sanatan) Religion To Make A Grave Is Not Allowed Similarly In Islam There Is Only One God (Allah), Worship Of Another One Is Not Allowed..

मैनें जब ये ब्लोग बनाया तब ये सोचा था की इस ब्लोग का इस्तेमाल मैं सिर्फ़ मुस्लमानों को सुधारने के लिये करुंगा क्यौंकि आज का मुस्लमान ये भुल चुका है की सही इस्लाम क्या है? अल्लाह के रसुल ने हमें किस तरह से जीना बताया है.... ये सब कुछ भुल चुका है...

बरहाल वन्दे मातरम के मसले पर मैने एक लेख लिखा था "एक भी भारतीय मुस्लमान देशभक्त नही है" तो उस पर मुझे जो टिप्पणियां मिली उससे काफ़ी तकलीफ़ हुई... बहुत से लोग इस बात से सहमत थे की "वन्दे मातरम" गाने से कोई देशभक्त नही हो जाता है....लेकिन फ़िर भी मुस्लमानों से उन्हे वन्दे मातरम गवांना भी है... इस बात को लेकर मेरे एक बहुत करीबी दोस्त से झगडा भी हो गया उसने मुझ से अब तक बात नही की है...उससे जो बहस हुई उस बह्स को मैने अपने पिछले लेख में उतार दिया इस मिट्टी और इस ज़मीन को पुजते हो तो इसमें दफ़न क्यौं नही हो जातें..!!!! If You Worship This Country This Soil So Why You Not Graved In This Soil???  

रविवार, 15 नवंबर 2009

इस मिट्टी और इस ज़मीन को पुजते हो तो इसमें दफ़न क्यौं नही हो जातें..!!!! If You Worship This Country This Soil So Why You Not Graved In This Soil???

मैनें अपने पिछ्ले लेख "एक भी भारतीय मुस्लमान देशभक्त नही है" में मुस्लमानों के "वन्दे मातरम" ना गाने की वजह बताई थी मेरे उस लेख को पढकर मेरा एक बहुत करीबी दोस्त जो  "आगरा की शिवसेना ईकाई का सदस्य" है ये लोग अपने आप को देशभक्त और देशप्रेमी कहते है जबकि (मुझे आज तक इनमें कोई देशभक्त और देशप्रेमी नही मिला बल्कि शहर के सारे गुण्डे-बदमाश शिवसेना और बंजरग दल के सदस्य होते है)

बरहाल मेरा दोस्त जिसका मेरा साथ पिछले नौ सालों से है मुझसे झगडने लगा....कहने लगा की तेरी हिम्मत कैसे हुई ये सब लिखने की? जो "वन्दे मातरम" नही गा सकता वो अपने देश से प्यार नही करता। अगर इस देश में रहना है तो वन्दे मातरम गाना पडेगा वर्ना तुम गद्दार कह लाओगे और गद्दारों के लिये इस देश में जगह नही है तुम ये देश छोडकर जा सकते हों.......वगैरह वगैरह... (वही बातें जो इनके जैसे "कथित देशभक्त" लोग अकसर कहते है)

बुधवार, 11 नवंबर 2009

एक भी भारतीय मुस्लमान देशभक्त नही है..!! No Indian Muslim Is Patriostic..!!!


पिछ्ले कुछ दिनों से जब से जमाते इस्लामी ने "वन्दे मातरम" के फ़तवे के मसले पर अपनी राय रखी है तब से पुरे देश में बवाल मचा हुआ कोई मुसलमानों को गाली दे रहा है,  कोई चेतावनी दे रहा है की हम काटने को बैठे है,             

कोई इस्लाम के "सच्चे" फ़ालोवर्स से परिचय करा रहा है,        कोई मुसलमानों को बता रहा है की उन्हे "वन्दे मातरम" गाना चाहिये, कोई गद्दार कह रहा है, कोई हमें देश से बाहर निकालने को तैयार बैठा है।

वन्दे मातरम का अर्थ क्या है?? वो मुह्म्मद उमर कैरानवी बता चुके है..!!!

इसलिये सीधे मुद्दे की बात करते है...

जो लोग इस फ़तवे पर इतना बवाल मचा रहे है उन सब लोगों से मैं सवाल करना चाहता हूं   "क्या वन्देमातरम गाना देशप्रेम का सर्टिफ़िकेट है?"  "क्या वन्देमातरम को ना गाने वाला देशद्रोही है?" "अगर कोई मुस्लमान फ़ौजी "वन्देमातरम" नही गायेगा तो क्या वो भी देशद्रोही कहलायेगा?"

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